बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

भावी प्रिये के नाम

मेरी भावी प्रिये,
बसंत का मौसम चल रहा है। आज ११ फ़रवरी है। वेलेनटइन डे अब बहुत दूर नही है। मै गुलाब का फूल कितने सालों से तुम्हारे लिए खरीदता हूँ और अंत में उदास होकर उसे किसी कूड़ेदान में डाल देता हूँ। इस प्रकार कब तब तुम आँख मिचौली खेलती रहोगी। आख़िर अब तो तूम्हारे बचपन के दिन नही है। अब यह बंद करो और आकर मुझे अपने बाँहों में भर लो।
प्रिये मै तुम्हारे साथ अपना सारा जीवन बिताना चाहता हूँ। मै चाहता हूँ कि तुम्हारे साथ किसी निर्जन स्थान पर बैठ कर बहुत सी प्यार भरी बातें करू। उस स्थान पर केवल पानी के बहने की आवाज आए और कुछ भी सुनाई न दे। वह पानी तुम्हारे पैरों को छूकर तुम्हारे चरणों के कमल को लेकर दूर तक जाए। साथ में मेरी आरजू भी रहे। जिससे सभी को यह पता चले कि कोई तुम्हारे कमल की खुशबु को बहुत चाहता
प्रिये
मै बहुत दिनों से सोच रहा हूँ कि मै तुम्हारे साथ किसी होटल में एक कप कॉफी पिता। कॉफी की महक के साथ मै तुम्हारे सांसों की खुशबु को अपने अन्दर ले लेता। मुझे इस बात की चाहत नही है कि मै वहां पर रात बिताऊ। मै उसके बाद सीधे घर वापस लौट आना चाहुगा।
किसी पार्क में बैठ कर मै तुमसे देश दुनीya के परे कि बात करना चाहता हूँ।
अच्छा चलो बहुत हो गया। कम से कम अब तो मेरे उपर अपने प्यार के बादलों की बारिस कर दो। जल्दी ही तुम्हें मैं दूसरा पत्र लिखूंगा। हो सके तो इसका जबाब देना।
तुम्हारा
उमेश कुमार

लोकतंत्र या गुंडा तंत्र

लोकतंत्र यानि गुंडा तंत्र
गुंडों का राज्य
मूर्खों का बहुमत
धूर्तों के साथ
मुर्ख राज्य की स्थापना
सुख स्वप्न के साथ
नीति की हत्या
अनीति का बोलबाला
वेश्या की अर्चना
सती का मुह काला
पर स्त्री गमन को आदर्श
चरित्र हीनता को शाबाशी
समझदार को नमस्कार
न समझ की जयकार
क्या
यही है हमारा लोकतन्त्र
मेरे यार