शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

केरवा डम

सबसे पहले यह बता देना उचित होगा कि यह यात्रा क्यों और किसलिए कि गयी १५ आगस्त को मेरे दोस्त श्रीश का जन्मदिन होता है और उसी पार्टी को मानाने के लिए हम लोग भोपाल के पास स्थित केरवा डम घुमाने गये उसकी कुछ तस्वीरे आपके लिए









सोमवार, 13 दिसंबर 2010

अर्विन्दम के नाम खुला पत्र

प्रिय अरविन्दम,

द सण्डे इण्डियन में नीरा राडिया और मीडीया पर प्रकाशित आपका लेख पढ़ा । नया विचार देने के लिए आपको धन्यवाद। नये तरीके से देखने में कोई बुराई नहीं है लेकिन बुरा को भी अच्छा कहना बुरा है। लाबिंग के बारे में आपने जो दलीले दी है वह सही है। लबिंग एक ऐसा पेशा है जिसमें आज दुनिया के लाखो लोग है। आप vichardhara की बात करते हैं ? ओबामा को जिताने में एक टीवी चैनल का पूरा सहयोग है, यह सही है। ओबामा के लिए वह पेड पत्रकारिता कर रहा था तो क्या आप भारत में भी पेड पत्रकारिता के बुराई के पेड़ को पैदा करना चाहते हैं ? मीडिया जगत पेड पत्रकारिता को पर प्रतिबन्ध लगना चाहता है और आप हैं जो उसे बढा़ रहे हैं।

इसमें आप की गलती नहीं है। आप सभी चीजो को पैसे के साथ तौलना चाहते हैं। आप तो इसे भी बैध ठहरा सकते हैं कि हमारे सांसद पैसा लेकर सवाल पूछे। लेकिन आपके देखने का नजरिया व्यसायिक है। जहां तक मुझे लगता है खास कर भारतीय मीडिया के बारे में बहुत कम जानते है। पत्रकारिता के सम्बन्ध में एक विद्वाव ने कहा है ‘‘ कि आगर डाक्टर गलती करता है तो एक आदमी मरता है ,आगर एक वकील गलती करता है तो मामले की जांच फिर से शुरू कर दी जाती है लेकिन अगर एक पत्रकार गलती करता है तो सारा देश उससे प्रभावित होता है।

केवल अपना फायदा देखना हर जगह उचित नहीं हैं। नीरा राडिया को एक लाविस्ट मान लिया जाए तो बरखा दत्त ,प्रभूचावला और वीर संघवी भी एक पत्रकार न हो कर लाविस्ट है। अगर ये सब लाविस्ट हैं और आपने ग्रहक के लिए काम करना चाहते हैं तो मीडिया नाम का चादर ओढ़ने की क्या जरूत है। लाविगं खुद में एक व्यवसाय है। आपके दिए आकडे़ के अनुसार, इसका व्यवसाय दिन दूना रात चौगनी बढ रहा है। इन लोगो को चाहिए की मीडिया की चादर को उतार फेंके और लाविगं को अपना व्यवसाय या मैं कहूं अपना

धन्धा बना ले। भविष्य उज्जवल रहेगा और देश उस गर्त में जाने से बच जाएगा जिसमें ये लोग ले जाना चाहते हैं।

मीडिया की अपनी कुछ आचार संहिता होती है। राजेन्द्र माथुर ने कहा है कि मीडिया के लोग ही मीडिया की आचार संहिता बना सकते है कोई और अगर उसे बनाएगा तो या तो रेखा गलत खीचे देगा या हरण कर ले जाएगा। आप मीडिया और लाविंग ,लाविंग और मीडिया को एक बना कर मीडिया का हरण करना चाहते हैं लाविंग का काम है आपने ग्रहको को फायदा पहुचाना तो मीडिया का ग्रहक कौन हैं ? वे पत्रकार जो इस मामले में फंसे हैं या नहीं फसे है या आम जनता है। यदि आम जनता मीडिया की ग्रहक है तो उस को जरूर फायदा होना चाहिए। लेकिन बरखा दत्त, वीर संघवी और प्रभूचावला के इस कारनामे से किसका फायदा होने वाला है क्या आप इसे बताते की कोशिश करेगें।

अब मैं बात करना चाहूंगा की मीडिया मैन जब लाविस्ट बनते हैं तो क्या होता है?

आपने विदेशों में पसरे लाविंग के व्यवसाय का उदाहरण लेकर इस बात को समझाने का प्रयत्न किया है कि यह सही है तो उन देशों के बारे में कुछ बाते औऱ भी हैं। आप अमेरिका की बात करेंगे, इग्लैड की बात करेंगे। आप कहते हैं की वहां मीडिया संस्थान और पत्रकार लाविंग करते हैं। लेकिन शायद आरतो यह मालूम नहीं है की वहां के एक पत्रकार बिना टिकट यात्रा नहीं कर सकता है। गिफ्ट या अनुदान(घूस) नहीं ले सरता है।

किसी भी ऐसी कंपनी का शेयर नहीं खरीद सकता है जिसकी वह रिपोर्टिंग कर रहा है। अगर वह ऐसा करता है तो उसे अपनी बीट छोड़नी पड़ती है या फिर संस्थान के बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। वहां तो व्यवस्था यहां तक है कि कोई पत्रकार किसी पार्टी को कवर करने जाए तो भी वह अपना बिल खुद चुकाए। जरा सोचिए।

एक पत्रकार ऐसे में लाबिंग कैसे कर सकता है। हां दलाली जरुर कर सकता है। क्योंकि दलालों को नौकरी की चिंता नहीं रहती है। पत्रकारों को अपने चरित्र के बारे में सोचना पड़ता है। लाबिंग करने वाले अलग लोग होते हैं और मीडिया में काम करने वाले अलग लोग होते हैं। अगर एक ही आदमी से ऑपरे भी करवाओगे और पूल का क्शा भी बनवाओगे तो वह दोनों ही काम गलत करेगा। जिसका ऑपरे कर रहा है वह तो मरेगा ही और वह पूल भी ज्यादा दिन तक नहीं चल पाएगा और उससे भी लोग मरेंगे ही। अच्छा हो एक आदमी एक ही काम करे। प्रभु चावल, बरखा दत्त और वीर संघवी ने एक साथ दो काम हाथ में लिए लेकिन आज वो कहीं के नहीं रहे। अच्छा है यह हिंदुस्तान है कि उन्हें बाहर का रास्ता नहीं दिखाया गया केवल पदभर को कम किया गया है। भारत में भी लाबिंग का व्यवसाय फले-फूले इसमें कुछ भी बुरा नहीं है। लेकिन लाबिंग करने वाले इस व्यवसाय के हों। अन्य देशों की तरह हमारे दे में भी लाबिंग को स्थान मिले। मीडिया के लोग अगर लाबिंग करेंगे तो मीडिया का जो काम है उसे कौन करेगा। क्या कोई मीडिया कर्मी इस बात को सोच सकता है कि जिससे उसे काम निकलवाना है उसके खिलाफ कुछ भी छाप सके।

पत्रकार या तो पत्रकारिता करे या लाबिंग करे। दोनों एक प्रकार से व्यवसाय ही हैं। और इनमे से एक को उन्हें चुनना चाहिए। क्यों कुछ लोगों के फायदे के लिए पूरे समाज को गर्त में धकेलना चाहते हैं आप।

लाबिस्ट और पत्रकार में अंतर समझिए सहाब। दोनों को एक ही तराजू पर मत तौलिए।

आपका

उमे कुमार

एम.फिल मीडिया अध्ययन

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्नविद्यालय भोपाल मध्य प्रदे