गुरुवार, 31 मार्च 2011

आओ खेलें होली




आओ होली खेलें दिल खोल के ..................

शनिवार, 26 मार्च 2011

इस रंग बदलती दुनिया में

इस रंग बदलती दुनिया में
इन्सान कि नियत ठीक नहीं
निकला न करो तुम सज धज कर
इमान की नियत ठीक नहीं।
कुछ ऐसी ही नियत हमारे देश के नेताओ की हो गयी है। कोई भी इस हमाम में बचा नहीं है। सब के सब नंगे हो गये है। हमारे देश के प्रधान मंत्री को कुछ पता ही नहीं होता है कि क्या हो रहा है और सब अपनी अपनी गुल खिलते रहते हैं।
देश वासिओ! अब आपलोग भी अपनी नियत बदल लो या तो सजधज के निकलना बंद कर दो नही तो कब तुम्हारी इज्ज़त लुट जाएगी पता भी नहीं चलेगा।

शनिवार, 12 मार्च 2011

आखिर जनता ने ही उठा ही दी आवाज



मिस्र में जनता की आवाज को दबाने की जितनी भी कोशिश तत्कालीन सरकार ने कीआवाज उतनी ही बुलंद होती चली गई। नतीजा अब सब के सामने है। हुस्नी मुबारक को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा तथा साथ ही साथ देश निकाला भी मिला। वह जनता की ही आवाज थी जो इस करिश्में को कर दिखाई है। वही जनता अब अरब देशों में भी अपनी आवाज को उठा रही है। तो भारत की जनता कैसे पीछे रह सकती है। भारत के नागरिकों ने भी अपनी आवाज उठानी शुरु कर दी है। वह चाहे बहुत ही निचले स्तर से क्यों न हो। एक न एक दिन देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, लापरवाही, लालफीताशाही के खिलाफ जानता को अपनी आवाज उठानी ही थी। श्री श्री रविषंकर ने कह ही दिया है कि देश आज के नेतओं के बल पर नहीं चल सकता है। देश को जरुरत है ऐसे नेताओं की देश सेवा का केवल सपथ ने ले उसे कर दिखाने का जब्जा भी अपने अंदर विकसित करें।
मायावती शासित राज्य उत्तर प्रदेश में आखिर कर जनता ने अपनी आवाज को बुलंद कर ही दिया। बसपा के 54 विधायकों के उनके निर्वाचन क्षेत्र के नागरिकों ने ही रपट दर्ज कराने की मांग एक ऐतिहासिक पहलू बन सकता है। ऐसा भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में पहली बार हो रहा है कि किसी राज्य के नागरिकों ने अपने ही चुने प्रत्याशी पर उंगली उठाई हो। इससे एक चीज जो सिद्ध होती है वह यह है कि देश की जनता और खास कर बिमारु राज्यों के रुप में जाना जाने वाला उत्तर प्रदेश की जनता अब अपने अधिकारों के लिए जाग उठी है। उसे यह हवा कहां से मिली इसका तो पता लगाना संभव नहीं है। लेकिन यह एक साकारत्मक पहल है।
उत्तर प्रदेश की जनता ने अपने जिन विधायकों पर उंगली उठाई है उनमें सभी के सभी सत्ता के विधायक हैं। सत्ताधारी विधायक सत्ता के नशे में यह भूल जाते हैं कि जनता ने उन्हें किस लिए विधानसभा या लोकसभा में भेजा है। शिकायतों में सबसे अधिक मुरादाबाद मंडल के विधायकों पर है दूसरे स्थान पर मेरठ मंडल के छह विधायकों पर जनता ने विरोध दर्ज कराया है।
जनता के इस विरोध को देखते हुए सरकार को चाहिए की वह अब ऐसा विधायक पारित करे जिससे जनता अपने निर्वाचित प्रत्याशी को वापस बुला सके। अगर सरकार जनता के इस रुख को नजर अंदाज करती है तो उसे इसके बहुत बुरे परिणाम भोगने पड़ सकते हैं। मायावती जहां प्रदेश के जिले-जिले में घूमकर अपनी छवि को सुधारने की कोशिश कर रही है वहीं इससे उनकी छवि और धुमिल होती जा रही है। अपने प्रवास के दौरान मायावती क्या दिखाना चाहती हैं यह तो उनके भ्रमण के बाद वहां पर घटित घटना से साफ नजर आता है। उनके जाने से पहले ही उस क्षेत्र में मीडिया और नागरिकों को प्रतिबंधित कर दिया जाता है जहां उनका भ्रमण होना है। यह केवल जनता में दहशत पैदा करने का काम हो सकता है। इसका ताजा उदाहरण बुलान्दशाहर में देखने को मिला। मायावती अपने दौरे में बुलंदशहर गयी और वहां के प्रशासन ने उनकी सुरक्षा के इतने कड़े इंतजाम कर दिए कि "गीता बाल्मीकी" को अपनी जान गवानी पड़ गई। शहर में एक ओर मायावती के जिंदाबाद के नारे लग रहे थे और सीएम साहिबा तहसील के अभिलेख और अस्पतालों में मरीजों के हाल जानने के लिए जाने वाली थी। इसी ने अस्पताल की व्यवस्था में ऐसा परिवर्तन कर दिया कि आम नागरिक अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दे। अब ये मायावती हैं उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल तो हैं नहीं जो यह कह दें कि मेरे काफिले के लिए इतने प्रोटोकाल की आवश्याकता नहीं हैं। इन्हें तो केवल भूख है तो अपनी ताकत को दिखाने की उसकी कीमत चाहे जो हो।
2012 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में मायावती का प्रदेश दौरा उनकी छवि को कितना निखरता है यह देखने लायक होगा। कुछ भी हो , पिछले पांच सालों में जनता ने सत्ता पक्ष से जितनी परेशनी झेली है उतनी उसे किसी और से नहीं झेलनी पड़ी है। विधायकों के बुरे आचरण की खबरें उनके शासन काल में पूरे पांच से आती रही हैं। कहीं किसी विधायक ने कुछ किया तो कहीं किसी ने कुछ। पैसा ने देने पर इंजीनियर की हत्या तो जन्मदिन पर नोटों का हार। दौरे पर एसपी साहब जूती साफ करते हैं तो जन्मदिन पर डीआईजी साहब केक खिलाते हैं। पूरा का पूरा सरकारी कुनबा ही लगा है जी हजूरी में। इस दहशत में किसी राज्य की जनता कब तक रह सकती है। सरकार के गुलाम सरकारी कुनबा हो सकता है लेकिन जनता नहीं। शंखनाद जनता को करनी है जो वह कर चुकी है।