गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

पत्थर बनाने के सिवा

सोना सोना होता है
और
सोना सोना होता है
पत्थर से सोना बनता है
पर यहाँ तो
सोने से पत्थर बनता है
यह एक युग का अंत है
या
युग कि शुरुआत है
शायद नए युग की शुरुआत है
कितना कुछ तो झेल चूका है वह
भ्रष्टाचार, आत्याचार, दुराचार, व्यभिचार
बलात्कार, मारकाट
ये जितने "चार" और "कार" हैं
सब तो सह चूका है वह
आखिर अब बचा ही क्या है
पत्थर बनने की सिवा।

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

कैसे सुधरेगी स्थिति


बीमारु राज्य। भारत में बीमारु राज्य का दर्जा कुछ राज्यों का तो अनायास दिए गए हैं और ही यह चलन नया है। बिहार, उत्तर प्रदेश राजस्थान और मध्यप्रदे आज के बीमार राज्य नहीं हैं। समस्या यह है कि इन राज्यों की सरकारें इसकी बीमारी का इलाज नहीं करना चाहती हैं।
अब उत्तरप्रदे को ही ले लिजिए। देश में एक साल में बर्ड फ्लू या एड्स या अन्य बीमारी से जितने लोग काल के गाल में नहीं समाते हैं उससे अधिक उत्तर प्रदे में दिमागी बुखार से मर जाते हैं। पिछले सात सालों में इस बीमारी से लगभग 4000 मौतें हो चुकी हैं और 19000 के आसपास इससे पीडि़त है। लेकिन इस पर तो कोई राजनीतिक दल या सरकार कोई ध्यान देती है और ही स्वयं सेवी संस्थाएं। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सभी पार्टियों ने इस बीमारी से निजात दिलाने की प्रतिबद्धता अपने घोषणापत्रो में की है लेकिन चुनाव में यह एक मुद्दा नहीं बन सका है। स्वयं सेवी संस्थाएं तो स्वयं की सेवा के लिए ही बनाई गई हैं।
उत्तरप्रदे में स्वास्थ्य के लिए जो धन आवंटित होता है वह सीधे भ्रष्टाचार को चढ़ जाता है। 85000 करोड़ का राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाला इसी समझने के लिए बहुत है। इस घोटाले से संबंधित जांच जब आगे बढ़ती है तो ‘‘एक और मौत’’ हो जाती है। अभी तक इस जांच में 7 मौतें हो चुकी हैं। आखिर राज्य बीमार है तो मौत तो होंगी ही।
मध्यप्रदेश। राज्यगीत है- सबका दाता, दुःख का साथी, सुख का यह संदेश है, पिता की गोदी मां का आंचल अपना मध्यप्रदेश है। इसको तो सुनने के बाद दुष्यंत कुमार की ये लाइनें ‘‘यहां तो दरख्तों के साये में धूप लगती है, चलो चलें कहीं नया आशियाँ बनाएं’’ याद आता है। इस प्रदेश में जन्म के समय 1000 में 62 बच्चे मौत के शिकार हो जाते हैं। जबकि गोवा और केरल में क्रमशः 10 और 13 है। यही नहीं ‘‘हंगर रिपोर्ट’’ बताती है कि कुपोषण के सबसे ज्यादा मामले मध्यप्रदेश में ही हैं। यह राज्य कभी सुख का साथी बनेगा, ऐसा मुझे लगता नहीं है।
बीमार को दवा की जरुरत होती है। और साथ ही कुशल चिकित्सक की। खेद यही है कि एक राज्य ‘‘घोषणावीर शिव ’’ के हाथों में है जो अपने सिपहसलारों को मुंह मांगा वरदान देते हैं। तो एक ‘‘माया’’ के हाथ में है। कबीर दास ने कहा ही है ‘‘माया महा ठगिन हम जानी’’