दुनिया आपकी
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शनिवार, 28 सितंबर 2019
गुरुवार, 11 अक्तूबर 2018
मनुष्य झूठ बोल सकता है परन्तु
मनुष्य झूठ बोल सकता है परन्तु साक्ष्य नही: डा.हर्ष शर्मा
पूर्व राष्ट्रपति कलाम के जन्मदिन पर होगी कई प्रतियेागिताएं
डा.यादव ने बताया कि इसी श्रृंखला में आज प्रथम दिन भूगर्भ विज्ञान विभाग के सभागार में एक विशिष्ट व्याख्यान में राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला, सागर. के निदेशक डा.हर्ष शर्मा ने एक व्याख्यान दिया। डा.षर्मा अपराध अन्वेषण में भौतिक साक्ष्यो की महत्ता प्रकाश डालते हुए कहा कि एक जीवित मनुष्य झूठ बोल सकता है और बोलता है लेकिन साक्ष्य कभी भी झूठ नही बोलते।
इस अवसर पर बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता विज्ञान संकाय प्रो.एम.एम.ंिसंह, अपराध अन्वेषण षाखा टीकमगढ़ के वैज्ञानिक अधिकारी डा.प्रदीप कुमार, डा.अनु सिंगला, डा.अंकित श्रीवास्तव, डा.कृति निगम, डा.चन्दन नामदेव, डा.मुरली मनोहर यादव उपस्थित रहे।
समन्वयक डा.यादव ने बताया कि 12 अक्टूबर को प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता, 13 अक्टूबर को वाद विवाद प्रतियोगिता का आयोजन होगा। जबकि 15 अक्टूबर रक्तदान शिविर का आयोजन किया जायेगा। डा.यादव ने विश्वविद्यालय परिसर के अधिक से अधिक छात्र-छसात्राओं को प्रतियेागिताओं में प्रतिभाग करने की अपील की।
लेबल:
अखबारों,
गाली,
जरूरत अमल करने की है
मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017
पूरा गाँव एक था
लड़ाई में भी
सहयोग में भी
जुड़ने में भी
और टूटने में भी
पूरा गाँव एक था
ख़ुशी में भी
दुःख में भी
लड़ते भी थे
समझाते भी थे
क्योंकि पूरा गाँव एक था
काम भी एक था
दाम भी एक था
सभी अमीर भी थे
सभी गरीब भी थे
मेरा पूरा गाँव एक था
क्योंकि सब एक थे
सोमवार, 25 मई 2015
मोदी जीरो तो राहुल...
मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में हुआ
है और संसदीय सीट अमेठी है. यह सर्व विदित है की रायबरेली कांग्रेस का गढ़ रहा है.
इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, सोनिया गाँधी जहाँ रायबरेली से संसद रही है या रह चुकी
हैं वहीँ राहुल गाँधी अमेठी से संसद हैं. आजादी के बाद यदि कुछ समय को छोड़ दिया
जाए तो गाँधी परिवार ही यहाँ से सत्ता में रहा है. फिर भी वो कौन सी मजबूरियां हैं
जो राहुल गाँधी को आज भी झुग्गी बस्तियों में जाने के लिए मजबूर कर रही है. क्या
भारत में कभी कांग्रेस का शासन नहीं रहा है. या उत्तर प्रदेश में कभी कांग्रेस
सत्ता में नहीं रही है. नहीं इसे सही नहीं कहा जा सकता है. उत्तर प्रदेश और केंद्र
दोनों जगह पर कांग्रेस ने सत्ता संभाली है. लेकिन फिर भी उनके अपने क्षेत्र का
विकास न होना क्या प्रदर्शित कर रहा है.
अप्रैल २०१५ में जब मैं अपने घर जा रहा था तो ३५
किलोमीटर की यात्रा को ४ घंटे में पूरा किया था. रायबरेली से जायस महज ३५ किलोमीटर
की दुरी पर स्थित है. इसका अर्थ यह नहीं की मैं पैदल जा रहा था. यह यात्रा बस से
की गयी थी. सड़क पर गड्डे हैं या गड्डे में सड़क है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल काम
है. जायस और रायबरेली एनएच पर स्थित हैं. यदि इसकी यह स्थिति है तो बाकि जगहों के
बारे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. जहाँ मेरा घर है उस गांव या उसके आसपास
कोई साल के चार महीने जुलाई से ओक्टुबर
में बीमार हो जाए और उसे अस्पताल ले जाना हो तो मरीज रास्ते में ही भगवान
को प्यारा हो जायेगा. सड़क के नाम पर केवल गड्डे हैं और उसमे हमेशा पानी भरा रहता
है. १०८ हो या कोई और वहां तक पहुँच पाए यह संभव नहीं है.
यदि यह कहा जाए की कांग्रेस अमेठी और रायबरेली की
जनता को भेड़-बकरी समझती है तो दुःख नहीं होना चाहिए. पुरखों की फसल को ही राहुल और
सोनिया आज काट रही हैं. मैं कहीं भी देश के किसी भी हिस्से में जाता हु तो लोगों
का एक ही सवाल होता है कि आपका क्षेत्र को बहुत विकसित होगा. क्या बताऊँ उन्हें?
विकास के नाम पर कुछ भी नहीं है वहां. पिछले ११ साल से राहुल गाँधी वहां के संसद
हैं लेकिन क्षेत्र में जाते कब हैं यह बड़ा सवाल है. चुनाव में इस बार जाना पड़ा था.
क्योंकि ओवरटेक की सुविधा नहीं थी. आप पार्टी के कुमार विश्वास और भाजपा की स्मृति
ईरानी जो मैदान में थी. इसके पहले के चुनाव में तो कांग्रेस को ओवरटेक करने का
पूरा मौका दिया जाता था. कोई भी पार्टी अपना ताकतवर नेता ही उस क्षेत्र से नहीं
उतरती थी.
महज यह कह देने से कि हमारी सरकार नहीं है. क्या
आप बच जायेंगे. नहीं न. ११ सालों में आपने क्या किया है जब आपकी ही सरकार केंद्र
में रही है. जहाँ तक मेरा मानना है अमेठी और रायबरेली देश के उन पिछड़े हुए जिलो
में शामिल होने लायक भी नहीं हैं जहाँ बुनियादी सुविधाए भी उपलब्ध न हो. कांग्रेस
को अगर अपनी यह सीट बचाए रखनी है तो उसे काम करना पड़ेगा नहीं तो वह दिन दूर नहीं
जब यह सीटें भी हाथ से निकल जाए.
लोगों को एक बार बेवकूफ बनाया जा सकता है हमेशा
नहीं. कभी न कभी तो जागरूकता आएगी ही. धोखा ज्यादा दिन नहीं चलता है.
शनिवार, 23 मई 2015
भारत निर्माणः गांधी और मोदी
विकासशील भारत को विकसित भारत बनाने के लिए आजादी से पूर्व से ही विचार-विमर्श किया जाता रहा है। समय-समय पर इस दिशा में कुछ प्रयास भी किए गए। आज भी भारत के विकास के लिए प्रयोग ही किए जा रहे हैं। आजादी के इतने वर्षों के बाद भी भारत का विकास किस प्रकार और किस दिशा में हो, यह निर्धारित नहीं किया जा सका है।
आजादी के बाद से देश की सभी सरकारें गांधी के विचारों के आधार पर भारत को विकसित करने की बात करती रही हैं। इसी कड़ी में वर्तमान केन्द्रीय सरकार भी प्रयासरत है। हमें गांधी के विकास प्रतिरुप और मोदी के के विकास प्रतिरुप की समीक्षा करनी चाहिए। गांधी का मानना था कि देश के लघु एवं कुटीर उद्योगों तक स्थापना हो तथा गांव अपनी आवश्यकता की पूर्ति स्वयं करें। वहीं मोदी का विचार इसके एकदम उल्टा है। मोदी का मानना है कि देश का विकास मेक इन इंडिया के द्वारा किया जाना चाहिए। मानवपूंजी आधारित रोजगार की आवश्यकता वर्तमान भारत में हैं। देश में बेरोजगारी की दर निरंतर बढ़ती जा रही है। ऐसे में डिजीटल इंडिया का सपना देश के विकास का प्रतिरुप नहीं हो सकता है।
कोई भी विदेशी कंपनी भारत के विकास के लिए काम करेगी। इसका कोई भरोसा नहीं किया जा सकता है। 16वीं शताब्दी में भारत में व्यवसाय करने के लिए आई ईस्ट इंडिया कंपनी के विषय में सभी जानते हैं। गांधी का विचार था कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से पहले हमें अपने देश में स्वयं का निवेश करना चाहिए। देश में छोटे-छोटे उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए जिससे हर नागरिक को काम मिल सके। बेरोजगारी व्यक्ति को केवल आर्थिक रुप से कमजोर नहीं करती है। यह व्यक्ति को अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए गलत कार्य करने को मजबूर करती है। वर्तमान समय में गांवों से लोगों का पलायन निरंतर जारी है। भारत के वास्तविक विकास के लिए गांवों से शहरों की तरफ हो रहे पलायन की बढ़ती गति पर लगाम कसने की आवश्यकता है। पलायन को रोकने के लिए खेती एवं पशुधन को सम्पन्न और लाभकारी बनाना अत्यन्त आवश्यक है। इसका कारण यह है कि गांवों में संपन्नता और खुशहाली का आधार खेती और पशुध नही होता है। शहरों की तरफ के पलायन को रोकने के लिए यह भी आवश्यक है कि गांवों केा इस तरफ से विकसित किया जाए कि सभी को यथा उपयुक्त कार्य अपने आसपास ही उपलब्ध हो सके। मेक इन इंडिया कार्यक्रम पलायन की प्रावृत्ति को और बढ़ावा देने वाली साबित होगी।
गांधी का विचार था कि देश में स्वदेशीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। हमें अपने उपयोग की वस्तुओं का निर्माण स्वयं करना चाहिए न कि किसी देश से खरीदना चाहिए। स्वदेशी अपनाने से जहां एक ओर हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होगीं वहीं दूसरी ओर देश के नागरिकों को रोजगार की सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। मोदी का विचार इसके एकदम विपरीत साबित हो रहा है। मेक इन इंडिया द्वारा नरेन्द्र मोदी देश को दुनिया के लिए खोल देना चाहते हैं। भारत में विदेशी कंपनियां आकर अपना व्यवसाय करें वर्तमान केन्द्र सरकार की यही नीति है। इसके लिए नियमों में भी पर्याप्त तथा आवश्यकता से अधिक लचीला बनाया जा रहा है। यह एक तरह से देश को बेचने की कोशिश कही जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। सरकार विदेशी कंपनियों के लिए जमीन तथा कच्चा माल उपलब्ध कराएगी। इसके एवज में देश के नागरिकों को रोजगार की सुविधा प्राप्त होगी। सवाल यह उठता है कि देश के नागरिकों को कैसा रोजगार प्राप्त होगा। जहां तक मेरा मानना है इससे केवल मजदूर वर्ग का निर्माण किया जा सकता है। जो विदेशी कंपनियों भारत में पैसा निवेश करेंगी उन्हीं के ही लोग नीति निर्माण का काम करेंगी। बाकी देश के सभी नागरिक मजदूरी करने को मजबूर हो जाएंगे।
विश्व में कोई भी ऐसा देश मेरी जानकारी में नहीं हैं जिसका विकास विदेशी कंपनियों ने किया हो। चीन का उदाहरण लें या जापान का। सभी देश स्वयं ही विकसित हुए हैं। इन देशों में विदेशों से पैसा नही ंके बराबर आता है तथा ये देश स्वयं दूसरे देशों में अपना पैसा निवेश करते हैं या अपने यहां का तैयार माल दूसरे देशों में भेजते हैं। विश्व के लगभग सभी विकसित देश भारत को विकसित करने के लिए भारत की ओर नहीं आना चाहते हैं। उनका एकमात्र मकसद इस विशाल जनसंख्या वाले देश भारत की बाजार पर कब्जा जमाना है। बाजार का अपना एक ही सिद्धांत होता है- जहां लाभ हो वहां निवेश किया जाए। यदि विदेशी कंपनियों को ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में लाभ की संभावना है तो यहां निवेश अवश्य होगा। सवाल यह उठता है कि क्या विदेशी कंपनियों को होने वाले लाभ से भारत के नागरिकों को कोई लाभ होगा।
भारत निर्माण से संबंधित विचारों के आधार पर यदि मोदी और गांधी के दृष्टिकोण की तुलना की जाए तो यह साफ परिलक्षित होता है कि गांधी मानव आधारित पूंजी के उद्योगों को बढ़ावा देने की बात करते हैं और मोदी पूंजी आधारिता उद्योगों को बढ़ावा देना चाहते हैं। गांधी का मानना था कि ग्रामीण भारत के विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं है। यह सही भी है। आज भी देश की लगभग 67 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है। केवल 33 प्रतिशत के विकास को विकास नहीं कहा जा सकता है। आजादी के इतने वर्षों बाद भी यदि देखा जाए तो देश में गरीबी की स्थिति बनी हुई है। गरीबी बेरोजगारी का दुष्चक्र है। जहां बेरोजगारी होगी वहां गरीबी स्वयं आ जाएगी। पूंजी आधारित अर्थव्यवस्था में मानव संसाधन का उपयोग कम करके तकनीकी तथा मशीनों का उपयोग ज्यादा किया जाता है। इससे जहां कम लोगों में अधिक काम किया जा सकता है वहीं लाभ भी अधिक होता है। ऐसी अर्थव्यवस्था उस देश के लिए अच्छी होती है जहां पर मानव संसााधन की कमी होती है। भारत में सौभाग्य से पर्याप्त मात्र में मानव संसाधान उपलब्ध है। यदि यह कहा जाए की मानव संसाधन केवल पर्याप्त मात्र में नहीं बल्कि अधिक है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
किसी भी देश की जनसंख्या दुधारी तलवार की तरह होती है। यदि उसका सही से उपयोग किया जाए तो देश के विकास का काम करती है और यदि गलत तरीके से उसका उपयोग किया जाए तो वह देश के विनाश के लिए काम करती है। भारत के नागरिकों को तब तक उचित रोजगार नहीं दिया जा सकता है जब तक मानव आधारित उद्योगों का विकास का विकास नहीं किया जाता। गांधी ने सूत कातने या सूती कपड़े के उपयोग की बात इसलिए नहीं कहा था कि देश में यह में अत्याधिक मात्रा में उपलब्ध बल्कि इसलिए कहा था कि इससे देश के हर नागरिक को रोजगार के साथ ही साथ तन ढकने के लिए कपड़ा उपलब्ध हो सकेगा।
शुक्रवार, 22 मई 2015
मोदी के नाम खुला पत्र
प्रिय प्रधानमंत्री/प्रधानसेवक
आपने देश के विकास के लिए क्या किया यह तो हम नहीं बता सकते हैं. जहाँ तक मुझे पता है आपने विदेश यात्रा खूब की है. आप के अनुसार ही विदेशों में हमारी खूब इज्जत हो रही है. हमारी विदेश निति मजबूत हो रही है. लेकिन आपने अपनी विदेश यात्रा के दौरान जो बहस छेड़ा है, वह विचार का विषय बन गया है. भारत में जन्म लेना क्या शर्मिंदगी है या गर्व का विषय है. हमारे वैदिक ग्रंथों में कहा गया है कि जननी और जन्म भूमि स्वर्ग से भी महान होती है. ऐसे में हमें अपनी जन्मभूमि पर शर्मिंदगी कैसे हो सकती है.
भारत ऋषियों-मुनियों का देश रहा है. यदि भारत के इतिहास पर नजर डाला जाए तो हमें गर्व करने के बहुत से अवसर मिल सकते हैं. गलत तरीके से इतिहास का विश्लेषण करने के कारण ही हमें शर्मिंदा होना पड़ता है. शिक्षा के क्षेत्र में बात की जाए तो नालन्दा और तक्षशिला विश्वविद्यालय न केवल भारत में बल्कि विश्व में अपनी अमिट पहचान रखते थे. भारतीय शिक्षाविदों के द्वारा दिए गये सूत्र आज भी वैज्ञानिक शोध का आधार बन रहे हैं.
इतिहास में यदि महिलाओं की स्थिति का विश्लेषण किया जाए तो हम पाते हैं की गार्गी, रानी लक्ष्मी बाई बहुत से नाम ऐसे हैं जिन्होंने देश को सम्मानित किया है. भारत में आज भी परिवार जैसी संस्था अपना अस्तित्व बनाये हुए है. परिवार केवल हमें रहने के लिए स्थान नहीं देता है बल्कि हममें संस्कारों को रोपित करने का भी काम करता है. देश में वर्तमान में जो सामाजिक बुराइयाँ दिखाई दे रही हैं उनका अस्तित्व भी भारत में पुरातन काल में नहीं था. परिवार के टूटने के कारण ही आज के समय में यौन हिंसा, चोरी आदि बढती जा रही है.
भारत में इन बुराइयों का कारण यहाँ के लोगों में निरंतर देश प्रेम का हो रहा ह्रास है. देश का प्रधानमंत्री ही देश की टोपी को विदेशों में उछालने का काम कर रहा है. ऐसे में यदि कोई भी देश भारत के विषय में अपनी गलत अवधारणा बनाये तो कोई आतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए. जब कोई व्यक्ति अपनी इज्ज़त नहीं करता है तो उसकी इज्जत कोई नहीं करता है. यही सिद्दांत देश के साथ भी लागू होता है. आपके के द्वारा दिया गया बयान हमारे देश की इज्जत को बढाने वाला नहीं बल्कि हमारी इज्जत को कम करने वाला है.
भारत ही वह देश है जो किसी भी संस्कृति को अपने में समाहित करने की क्षमता रखता है. जो देश किसी को भी अपने में समाहित कर लेता है वह कभी समाप्त नहीं होता है. विश्व में कोई भी ऐसा देश नहीं होगा जहाँ पर इतनी विविधता हो जितनी भारत में है. संस्कृतियों की बात की जाए तो विश्व से आज के समय में बहुत सी संस्कृतियाँ इतिहास बन गयी है लेकिन भारतीय संस्कृति आज भी जीवित है और हमेशा जीवित रहेगी.
आप देश को देश न समझ कर कोई उत्पाद समझ रहे हैं. १६वीं शताब्दी में अंग्रेज भारत व्यापार करने के लिए ही आये थे. यदि हमारे देश के प्रधानमंत्री को इतिहास के विषय में थोडा बहुत भी ज्ञान होगा तो उन्हें पता होगा कि अंग्रेज केवल व्यापार ही नहीं किये देश पर राज भी किया. कोई भी देश या व्यक्ति पैसा लगता है तो लाभ कमाना उसका लक्ष्य होता है. आज देश को फिर से १६विं शतब्दी की ओर ले जाया जा रहा है.
प्रिये प्रधानमंत्री आप महात्मा गाँधी को बहुत मानते हैं. ऐसा मैंने सुना है. दिल से मानते हैं या दिमाग से यह मुझे नहीं पता है. लेकिन इतना मैं पूरे विश्वास से कह सकता हु की आप उनकी नीतियों को नहीं मानते हैं. गाँधी कुटीर उद्योग से देश का विकास चाहते थे और आप उसके एकदम विपरीत. शायद मैं विषय से भटक रहा हु. गाँधी ने देश को देश माना और उन्हें भी देश पर गर्व था रामराज उनका सपना था. आप भी राम का नाम तो लेते ही होंगे. उन पर भी आपको शर्म आती होगी. मेरी एक छोटी सी सलाह मानिए. आप उस देश चले जाए जहाँ आपको शर्म न आये. व्यक्ति कहाँ पर जन्म लेगा यह तो निर्धारित नहीं कर सकता है लेकिन कहाँ पर रहेगा यह निर्धारित कर सकता है.
आपका शुभ चिंतक
शनिवार, 16 मई 2015
समस्या सोच का है
हमारे देश में आज भी यदि कोई काम गलत हो
जाए या नुकसान हो जाए या मैच में हार हो जाए तो उसके लिए नारी को जिम्मेदार ठहराया
जाता है. कहा जाता है कि इसकी वजह से हमारा काम ख़राब हुआ. लोग अपनी गलती को छुपाने
के लिए नारी को दोषित करते हैं और कहते हैं कि इसके कारण हमारा कोई भी काम सही से
नहीं हो पा रहा है. जब एक लड़की की शादी होती है और वह दुल्हन, लक्ष्मी के रूप में
ससुराल जाती है. उस समय उसके ससुराल में कोई दुर्घटना घट जाए तो तो उस लड़की के
माथे दोष लगाया जाता है की यह डायन कहाँ से आई है. आते ही नुकसान होना शुरू हो
गया. उस दुर्घटना चाहे किसी और की गलती से हुआ हो. सारा दोष उस लक्ष्मी जैसी बहु
पर डाल दिया जाता है. तथा उसे डायन कहने लगते हैं.
कई
मायने में वर्तमान में पुरुषों से महिलाएं बहुत आगे हैं. बोर्ड परीक्षाओं के
परिणाम से इसकी पुष्टि की जा सकती है. पढाई हो या खेल कूद का मैदान, प्रशासनिक
सेवा हो या देश की सेवा, चिकित्सक हो या शिक्षक हर किसी कार्य क्षेत्र में वह बढ़चढ़
भाग लेती हैं और आगे भी निकलती हैं.
भारत में महिलाओं का एक सशक्त इतिहास है.
विज्ञान के क्षेत्र में कल्पना चावला से लेकर खेल के मैदान में सयाना नेहवाल,
राजनीती में इंद्रा गाँधी, सोनिया गाँधी, ममता बनर्जी, मायावती, उमा भारती,
प्रतिभा पाटिल सेवा क्षेत्र में चंदा कोचर, इंद्रा नुई, किरण बेदी, मदर टेरेसा,
स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मी बाई, देवी आहिल्या बाई, रजिया सुल्तान, बेगम
हजरत महल आदि के इतिहास को भुलाया नहीं जा सकता है.
ऐसा सशक्त इतिहास होने के बावजूद हमारे
देश के लोग टोने-टोटके जैसे भ्रम में पड़े हुए हैं. जो अपना दोष किसी नारी पर थोप
देते हैं. भारत देश इतना आगे बढने के बावजूद भी कहीं न कहीं बाकि देशों के मुकाबले
पीछे है. अनपढ़ लोग को कहने को ही बहमी माने जाते हैं. जबकि यहाँ तो पढ़े लिखे लोग
भी विश्व कप में हार का दोष अनुष्का शर्मा पर लगा देते हैं. गौरतबल है की सिडनी के
इस क्रिकेट स्टेडियम में ४२ हजार लोगों के बैठने की जगह है. इन दर्शकों में एक
अनुष्का शर्मा भी थी जो सिडनी में भारत का मैच देखने गई थी. भारत ऑस्ट्रेलिया से
अपना मैच हार गया. इसके लिए ४२ हजार में से किसी एक को जिम्मेदार हमारी सोशल
मीडिया ने ठहराया. वह थी अनुष्का शर्मा. विराट कोहली के एक रन पर आउट होना जैसे
अनुष्का की गलती हो. क्या अनुष्का शर्मा सिडनी मैच देखने न जाती तो विराट कोहली
आउट न होते और भारत मैच न हारता.
किसी भी खेल में जीत और हार खेल के मैदान
में तय होता है न कि स्टेडियम में बैठे लोगों के भाग्य से. खेल मैदान में लिया गया
फैसला और हमारा प्रदर्शन हमारी जीत या हार का कारण है. इसके लिए किसी भी प्रकार से
किसी महिला को दोषी ठहराया जाना हमारी कुंठित मानसिकता को दर्शाता है. यह हमें
बहुत ही अच्छी तरह से इस मैच में दिखाई दिया.
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