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सोमवार, 11 अप्रैल 2011

जरूरत कानून की नहीं,जरूरत अमल करने की है

भारत का संविधान दुनिया के सभी संविधानों से बड़ा है जिसमें बहुत से नियम कानून भरे पड़े है। किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए ये कानून मेरी नज़र में प्रयाप्त हैं। लेकिन सही से इन्हें प्रयोग में ना लाने के कारण समस्याएँ पैदा हो रही है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जन लोकपाल विधेयक की माँग करते हुए प्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हज़ारे ने लगभग 94 घंटे का उपवास रखा। सरकार ने उनकी सभी माँगो को मान भी लिया है। इससे क्या होने वाला है ? क्या ये भी संविधान पुस्तिका में जा कर दफन हो जायेगा या इसके कुछ ठोस परिणाम भी मिलेंगे। ये तो आने वाला समय ही बताएगा। भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सरकार ने कई एजेंसियाँ जैसे सीवीसी,सीबीआई,आईबी,सीआईडी का गठन किया है। लेकिन इनके प्रमुख के पद पर जिन्हें नियुक्त किया जाता है वे स्वंय भ्रष्टाचारी होते है। अगर हम एक नज़र सीवीसी प्रमुख पीजे थॉमस पर डाले तो इससे साफ नज़र आता है कि ये संस्थाएँ साफ नहीं है। अपने बचाव के पक्ष में थॉमस ने कहा था कि योग्यता में कहीं भी नहीं लिखा था कि अभ्यार्थी भ्रष्ट ना हो। तो क्या इससे यह समझना चाहिए कि अब वह समय आ गया है जब यह भी लिखना पड़ेगा। लोकपाल बिल बनाने से ही सब कुछ नहीं हो जाएगा। जरूरत है बनाए गए कानून का सही तरीके से अमल हो।