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मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

पूरा गाँव एक था



लड़ाई में भी
सहयोग में भी
जुड़ने में भी
और टूटने में भी
पूरा गाँव एक था
ख़ुशी में भी
दुःख में भी
लड़ते भी थे
समझाते भी थे
क्योंकि पूरा गाँव एक था
काम भी एक था
दाम भी एक था
सभी अमीर भी थे
सभी गरीब भी थे
मेरा पूरा गाँव एक था
क्योंकि सब एक थे

सोमवार, 21 अप्रैल 2014

आओ खेती करें


अब आप सोच रहे होंगे
क्या पागलपन है।
अच्छा खासा पढ़ा-लिखा है
फिर इसे क्या पड़ी है
खेती करने की।
किसान आत्महत्या कर रहे हैं तो
लगता है इसे भी आत्महत्या करनी है।
दोस्त!
यह खेती खेतों में नहीं
दिमाग में होगी
फल-फूल नहीं
बातें उगेंगी
बेवकूफ बनाने की खेती होगी।
बजट के अनुसार
कोई लागत नहीं है
शिक्षा के अनुसार
कोेई जरुरत नहीं है।
जरुरत केवल जुगाड़ की है।
अब बताओ खेती करोगे मेरे साथ

रविवार, 13 अप्रैल 2014

आज भारतीयों की सादगी दिखी

हमारे देश में  नया साल दो बार आता है
एक धूम धमाके के साथ
और एक सादगी के साथ
पहले वाला नया साल आयातित है
दुल्हन है
इसलिए तो उस दिन खूब धूम धड़ाका होता है
और दूसरा
अपने देश का
वैसे आज भी आम भारतीय सादगी पसंद है
बाजार की चमक  गावं अभी बचे हैं
लेकिन कब तक
कोई इसे घर की मुर्गी दाल बराबर कह सकता है
पर मै तो इसे देश की महानता मानता हु
आपका क्या विचार है 

सोमवार, 31 मार्च 2014

आओ आज गम्भीर चिंतन करें

बहुत दिनों के बाद सोच रहा हु आज कुछ गम्भीर सोचु
लेकिन किस विषय में सोचु
कुछ मिल नहीं रहा है
राजनीती पर सोचने से पहले ही सोच
विचार आ जाता है कि
यह तो गंदे नाले से भी ज्यादा गन्दी हो गयी है
आरोप प्रत्यारोप और गली गलौच
राजनीती का विषय हो गया है
गरीबों के बारे में सोचने पर पता चलता है कि
उन पर तो पहले से ही गरीबों के ठेकेदारों ने कब्ज़ा जमा रखा है
केवल अपनी ठेकेदारी के वास्ते
शिक्षा के बारे में सोचने पर पता चलता है कि
यह तो महज पास होने के लिए हो गयी है
येन केन प्रकारेण परीक्षा पास हुआ जाया
कहीं भी गम्भीरता से कोई काम होता नहीं दीखता है
केवल दिखावा है
सब दिखावा है
निज स्वार्थ अपना हित है
इसी के लिए लोग आम और खास आदमी बन जाते हैं

रविवार, 30 मार्च 2014

भारत भाग्य विधाता

खूब पढ़ लिया हमने
जन गण मन अधिनायक जय हे 
भारत भाग्य विधाता 
समझ नहीं आया अब तक भी 
है कौन हमारा भाग्य विधाता 
५ साल में एक बार जनता बनती भाग्य विधाता 
बाकी समय कौन है भाग्य विधाता 
लोकतंत्र की ही महिमा है 
देव कभी याचक तो 
याचक कभी देव बन जाते हैं। 

शनिवार, 22 मार्च 2014

क्या छपता है अखबारों

आज जब मैं अखबारों के पन्ने पलट रहा हूं
सुबह के सात बज रहे हैं
कि
अचानक एक पृष्ट पर मेरी नजर रुक जाती है
बुन्देलखण्ड जागरण
पूरा पृष्ट देखा
पूरा बुन्देलखण्ड देखा
एक नया राज्य बनने को आतुर बन्देलखण्ड
पूरे पृष्ट पर कहीं भी नहीं था विकास
कहीं भी नहीं थी
पानी, बिजली, सड़क जैसी मूलभूत समस्याएं
कहीं भी नहीं था किसानों के हितों की बातें
बुन्देलखण्ड जागरण में केवल अपराध था
पृष्ट पर लगभग 15 खबरें हैं
जिनमें से 11 खबरें
हत्या, मौत, मारपीट
लडाई, दंगा और लूटपाट की
सवाल यह नहीं कि अखबार में क्या छपा है
सवाल यह है कि क्या बुन्देलखण्ड ऐसा ही राज्य बनने जा रहा है
क्या इसे एक राज्य का रुप देेने में लगे लोग ऐसा ही बुन्देलखण्ड बनाना चाह रहे हैं
क्या रानी लक्ष्मीबाई ऐसे ही बुन्देलखण्ड के लिए शहीद हुई थी
इन सब सवालों के अन्दर जाने पर हमें दिखाई देती है
एक वेदना
जो कहा रही है
बुन्देलखण्ड वीरों की धरती है
चोरांे, लुटेरों की नहीं

शुक्रवार, 21 मार्च 2014

यह यह चुनावी साल है

 भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा त्यौहार है
यह चुनावी साल है
सज गया है चुनावी मैदान
कुछ  परेशान तो कुछ हैरान हैं
यह चुनावी साल है
लाल परेशां हैं अपने ही सागो से
मोदी की जय जय कार है
केजरीवाल आप के साथ थे
और आप के साथ हैं
लोकपाल का पता नहीं
बाकी सारा काम है

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

पत्थर बनाने के सिवा

सोना सोना होता है
और
सोना सोना होता है
पत्थर से सोना बनता है
पर यहाँ तो
सोने से पत्थर बनता है
यह एक युग का अंत है
या
युग कि शुरुआत है
शायद नए युग की शुरुआत है
कितना कुछ तो झेल चूका है वह
भ्रष्टाचार, आत्याचार, दुराचार, व्यभिचार
बलात्कार, मारकाट
ये जितने "चार" और "कार" हैं
सब तो सह चूका है वह
आखिर अब बचा ही क्या है
पत्थर बनने की सिवा।

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

तुम याद आओगे

अन्ना तुम याद आओगे। वह और वक्त था जब देश आजाद था आज भी आजाद है और कल भी रहेगा पर इस आजादी का रूप क्या होगा सवाल इस पर है आजादी पर नहीं जरा सोचो हम भी आजाद हैं। लेकिन कहाँ है वह आजादी जिसके लिए लड़े थे देश के वीर जवान भ्रष्टाचार, दुराचार, के भेंट चढ़ गयी है सारी आजादी ऐसे में अन्ना तू ही तो काम आया है.