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शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

कुछ बातें अभी है बाकी

बहुत बार मै यह सोचता हूँ कि भोपाल में ही क्यों न कुछ समय के लिए रुक जाया जाये। फिर सोचता हूँ कि लोग कहते है कि यहाँ कैसे रहा जाये। न खाने को समय से भोजन मिलता है न पीने को पानी। फिर भी यह अच्छा क्यों लगता है पता नहीं।
इसी उधेड़बुन में काफी समय बीत जाता है मेरा प्रतिदिन। कभी कभी यह भी सोचता हूँ कि भोपाल ने कुछ भी चाहे न दिया हो लेकिन कुछ अच्छे दोस्त तो दिया हे है। जिनके साथ कुछ समय तो बिताया हे जा सकता है। यहाँ आने के बाद सम्बन्ध इतने तो बन हे गये हैं कि भारत के किसी भी शहर में २-४ दिन रुकने लिए कुछ करना नहीं पड़ेगा।