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सोमवार, 21 अप्रैल 2014

आओ खेती करें


अब आप सोच रहे होंगे
क्या पागलपन है।
अच्छा खासा पढ़ा-लिखा है
फिर इसे क्या पड़ी है
खेती करने की।
किसान आत्महत्या कर रहे हैं तो
लगता है इसे भी आत्महत्या करनी है।
दोस्त!
यह खेती खेतों में नहीं
दिमाग में होगी
फल-फूल नहीं
बातें उगेंगी
बेवकूफ बनाने की खेती होगी।
बजट के अनुसार
कोई लागत नहीं है
शिक्षा के अनुसार
कोेई जरुरत नहीं है।
जरुरत केवल जुगाड़ की है।
अब बताओ खेती करोगे मेरे साथ

रविवार, 13 अप्रैल 2014

आज भारतीयों की सादगी दिखी

हमारे देश में  नया साल दो बार आता है
एक धूम धमाके के साथ
और एक सादगी के साथ
पहले वाला नया साल आयातित है
दुल्हन है
इसलिए तो उस दिन खूब धूम धड़ाका होता है
और दूसरा
अपने देश का
वैसे आज भी आम भारतीय सादगी पसंद है
बाजार की चमक  गावं अभी बचे हैं
लेकिन कब तक
कोई इसे घर की मुर्गी दाल बराबर कह सकता है
पर मै तो इसे देश की महानता मानता हु
आपका क्या विचार है 

सोमवार, 31 मार्च 2014

आओ आज गम्भीर चिंतन करें

बहुत दिनों के बाद सोच रहा हु आज कुछ गम्भीर सोचु
लेकिन किस विषय में सोचु
कुछ मिल नहीं रहा है
राजनीती पर सोचने से पहले ही सोच
विचार आ जाता है कि
यह तो गंदे नाले से भी ज्यादा गन्दी हो गयी है
आरोप प्रत्यारोप और गली गलौच
राजनीती का विषय हो गया है
गरीबों के बारे में सोचने पर पता चलता है कि
उन पर तो पहले से ही गरीबों के ठेकेदारों ने कब्ज़ा जमा रखा है
केवल अपनी ठेकेदारी के वास्ते
शिक्षा के बारे में सोचने पर पता चलता है कि
यह तो महज पास होने के लिए हो गयी है
येन केन प्रकारेण परीक्षा पास हुआ जाया
कहीं भी गम्भीरता से कोई काम होता नहीं दीखता है
केवल दिखावा है
सब दिखावा है
निज स्वार्थ अपना हित है
इसी के लिए लोग आम और खास आदमी बन जाते हैं

रविवार, 30 मार्च 2014

भारत भाग्य विधाता

खूब पढ़ लिया हमने
जन गण मन अधिनायक जय हे 
भारत भाग्य विधाता 
समझ नहीं आया अब तक भी 
है कौन हमारा भाग्य विधाता 
५ साल में एक बार जनता बनती भाग्य विधाता 
बाकी समय कौन है भाग्य विधाता 
लोकतंत्र की ही महिमा है 
देव कभी याचक तो 
याचक कभी देव बन जाते हैं। 

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

ये मीडिया चाहती क्या है

माँ, बहन, बेटियों जैसी बच्चियां
आइटम गर्ल बनाई  जाती हैं
सुरक्षित होने का सूत्र बताने की जगह
सुंदर दिखने के नुख्से बताती है
आखिर ये मीडिया चाहती क्या है।
समाचार पत्रों के महिला विशेष पृष्ठ पर
खाना बनाना और घर सजाना बताया जाता है
न अर्थ की बात न निति की बात
बात केवल वेश-भूषे की होती है
आखिर ये मीडिया महिलाओ को
बनाना क्या चाहती है .