शुक्रवार, 10 जून 2011

घर से बाहर का विद्यार्थी जीवन

मुझे ३ साल की पढाई के लिए भोपाल आना पड़ा तो यह पता चला कि घर से बाहर का विद्यार्थी जीवन क्या होता है. वैसे मैं यहाँ केवल २ साल के लिए आया था पी.जी. करने लेकिन एम.फिल. के लिए एक साल और रुकना पड़ा. इन तीन सालों पर अगर एक किताब भी लिखी जाये तो शायद कम होगी. उपन्यास लिखने की जरुरत पड़ेगी. फिर भी मै अपने कुछ अनुभावों को इस लेख के माध्यम से आप सब के साथ साँझा करने की कोशिश करता हूँ.
घर के बहुत सारे नियम कानून होते हैं. कब सोना है, कब उठना है, कब खाना है, कब क्या करना है, कब क्या करना है. लेकिन भोपाल आकर मुझे इन सब बंधनों से छुटकारा मिल गया. यहाँ सारे नियम हमारे अपने बनाये होते हैं. मुझे कब क्या करना है. कहाँ जाना है, क्या नहीं करना है, क्या करना है.
रात में दोस्तों के साथ आइस क्रीम खाने जाना और रात को देर से वापस आने के अपने मजे होते हैं. इस बात की कोई चिंता नहीं होती है देर हो गयी तो घर पर डाट पड़ेगी. घर से फोन भी आता है तो दिन में ही आ जाता है जिससे फोन की भी कोई चिंता नहीं होती. घर से बाहर की पढाई के अपने मजे हैं. सच में याद आएंगे ये दिन.

गुरुवार, 9 जून 2011

विद्यार्थी जीवन – सबसे बड़ा अमीर और सबसे बड़ा गरीब

विद्यार्थी जीवन के अंपने फायदे और नुकसान होते हैं. मेरा विद्यार्थी जीवन लगभग समाप्त होने वाला है. और जब मै इसका मूल्यांकन करने की कोशिश की तो यही पाया की इसके फायदे ज्यादा और नुकसान कम रहे हैं. इस जिंदगी में न तो मै कभी गरीब हुआ और न ही कभी अमीर. हमेशा बराबर का मामला रहा है. १-५ तारीख तक पिता जी का भेजा हुआ पैसा आ जाता था और २० दिन मजे से बीत जाते थे उसके बाद शुरू होता था दोस्तों मांगने का सिलसिला. लेकिन सब की तो वही जिंदगी है और सब पप्पा छात्रवृत्ति पर ही तो निर्भर हैं. तो वह लोग भी थोडा-थोडा देते थे और उसके पहले ही एक सवाल पूछ लेते थे “कब दोगे” जिसका जबाब भी एक ही होता था “बहुत जल्दी” और वह बहुत जल्दी फिर वही १-५ तारीख के बीच में ही आता था.
पैसा आया और शुरू हुआ पार्टियों का दौर. २-४ दिन किसी अच्छे से होटल में खाना खाना. दोस्तों के साथ थोड़ी मस्ती. इस तरह से पता ही नहीं चलता था कि कब २० तारीख आ गयी. २० के बाद तो दिन काटता ही नहीं है. एक एक दिन एक एक साल के बराबर लगने लगता है क्योकि पैसा खत्म हो गया. दोस्तों की मेहरबानी शुरू हो गयी.
खैर विद्यार्थी जीवन के अपने ये मजे हैं. इन्हें किसी और जिंदगी में जीने के बारे में सोचा भी नहीं आ सकता है. क्योंकि उसके बाद तो शुरू होता है जिम्मेदारियो का दौर. जिसमे सभी की कुछ न कुछ अपेक्षा होती है. मम्मी-पापा चाहते हैं की बेटा अब काम करना शुरू करे तो क्या गलत चाहते हैं. लेकिन अभी बेटे पर मस्ती ही चडी हुई है तो वह क्या करे. आखिर स्टूडेंट लाइफ को इतनी जल्दी तो नहीं भुलाया जा सकता है.