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शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

चुनाव और बयान

चुनाव हो और भाषण न हो। ऐसा कभी हो सकता है। भाषण भी विकास को लेकर हो। क्या इससे चुनाव जीता जा सकता है या अपने विरोधी का षिकस्त दिया जा सकता है। नहीं न। तो। तो क्या ऐसा बयान दो कि मीडिया पागल हो जाए और बात चुनाव आयोग तक चली जाए।
अब आज़म खां को ही लिजिए। कारगिल में केवल मुसलमानों ने युद्ध जीता। हिन्दु वहां थे ही नहीं। हो गयी न बात। मीडिया कैसे नहीं इस बात को बढ़ती। पूरा खेल तो मीडिया में बने रहने का है। थोड़ा सा भी आप मीडिया से बाहर हुए कि आपकी राजनीति पर संकट के बादल मंडराने लगते हैं। खैर कारगिल कौन जीता यह तो सब जानते हैं लेकिन बेचारे आज़म खां चुनाव प्रचार से ही हार गए। अब वे चुनाव प्रचार भी नहीं कर पा रहे हैं तो चिट्ठी का सहारा ले रहें हैं। बात जो अपनी कहनी है। मैं चुनावी बयानों को एक-एक करके आपके सामने रखूगां। इसलिए आज के लिए केवल एक बयान ही काफी है। पढ़ो और मजा लो। चुनाव का मौसम है न।

    

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

यहां सब नंबर एक हैं

किसी भी प्रतियोगिता में पहला स्थान तो सभी प्राप्त करना चाहते हैं लेकिन क्या अपने कभी इस बात पर सोचा है कि सभी पहले स्थान पर हो भी सकते हैं। वह भी एक ही समय में। नहीं न। आइए हम आपको बताते हैं एक ऐसी दुनिया की कहानी जहां अधिकतर लोग पहले स्थान पर हैं। इस दुनिया का नाम है मीडिया की दुनिया। मेरा मतलब खबरों की दुनिया। यहां कोई भी दूसरे स्थान पर रहना पसंद नहीं करता है। हमें चाहिए तो पहला स्थान ही चाहिए। ये कितने भी दो नंबर के धंधे करें लेकिन रहेंगे पहले ही स्थान पर।


मध्यप्रदेश साहित्य, संगीत और षिक्षा का केन्द्र माना जाता है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की तो बात ही निराली है। कम से कम 15 हिंदी दैनिक यहां से निकलते हैं जिनकी शाखाएं पूरे हिन्दुस्तान में नहीं हैं तो भी दिल्ली में तो हैं ही। इन 15 में सभी पहले स्थान पर ही बरकरार हैं। इसको समझने के लिए खेल का उदाहरण लिया जा सकता है। खेल एक ऐसा शब्द है जो हॉकी के लिए भी प्रयुक्त होता है तो क्रिकेट के लिए भी। लेकिन सभी खेलों में कोई न कोई पहले स्थान पर रहता है। वही हाल भोपाल की मीडिया का है। यहां कोई पाठक संख्या में पहले स्थान पर है तो कोई बढ़त में पहले स्थान पर है। कोई नंबर एक उभरता हुआ अखबार है तो किसी में नंबर एक है। हद तो यह हो जाती है कि कोई समाचार पत्र अपने को विज्ञापनों में पहले स्थान पर रखना षुरु कर देता है।


अरे भाई हम समाचार पत्र क्यों खरीदते हैं। विज्ञापन देखने के लिए या खबरों को पढ़ने के लिए। भास्कर एक ऐसा समाचार पत्र है जो अपने को विज्ञापन में प्रथम स्थान पर बताता है। भविष्य में अगर पत्रकारिता का इतिहास लिखा जाएगा तो एक बात यह जरुर लिखी जाएगी कि भारत का पहला विज्ञापन समाचार पत्र भास्कर है। क्योंकि यह खबरों की अपेक्षा विज्ञापन को ज्यादा महत्व देता है। यह समाचार पत्र यह मान कर चलता है कि इसके पाठक समाचार नहीं पढ़ना चाहते हैं वे तो केवल खरीददारी करने के लिए विज्ञापन देखेंगे और सामान खरीदने चले जाएंगे। देष दुनिया में क्या हो रहा है इसको इससे कोई वास्ता नहीं है।


कभी भोपाल में पहले स्थान पर रहने वाला समाचार पत्र नई दुनिया ने फिर से बढ़त करना शुरु कर दिया है। यह उसका दावा है मेरा नहीं। कौन से श्रोत से आकड़े लिए गए हैं यह बात केवल नई दुनिया को पता है और किसी को नहीं। किसी ने इसके संपादक, अरे नहीं संपादक तो कुछ होता ही नहीं है मालिक जो संपादक से भी बड़ा है से कह दिया कि इसकी पंच लाइन सबसे ज्यादा बढ़ता हुआ अखबार लिख दो और इसने लिख दिया। पाठक तो कुछ समझता ही नहीं है। हां इतना जरुर है कि ये मीडिया वाले आम नागरिक को भेड़-बकरी समझते हैं। अब जब यह समाचार सबसे ज्यादा बढ़ रहा है तो सब इसे खरीदेंगे। क्योंकि एक भेड़ जिधर जाती है उसी ओर सभी भेड़ें चल देती हैं। पर क्या करें। ये आदमी निकले। ये एक ही रास्ते पर नहीं चालते हैं। यहां तो सही पर भी बहस होती है। तो झूठ को लोग कैसे स्वीकार कर लेंगे। लोग तो षायद न ही चलें इस रास्ते पर लेकिन जब समाचार पत्र अपना वितरण बताएगा तो यह जरुर बताएगा कि उसकी पाठक संख्या पिछले एक साल में इतनी बढ़ गई है। यही हाल कुछ अन्य समाचार पत्रों का भी है।


पहले स्थान पर बनने के लिए ये समाचार पत्र कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। स्थान पहला होना चाहिए चाहे वह किसी भी क्षेत्र में क्यों न हो। यही हाल रहा तो आने वाले समय में कुछ समाचार पत्रों की पंचलाइन कुछ इस प्रकार होंगी- झूठी खबरें परोसने में पहला स्थान, खबरों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने में पहला स्थान, सही खबरें छिपाने में पहला स्थान। आखिर रहना है पहले स्थान पर तो कुछ भी किया जा सकता है। जब कोई विज्ञापन में पहला स्थान लिखकर गौरव स्थापित करना चाहता है तो इसमें क्या बुराई है। यह पत्रकारिता की आत्महत्या नहीं गलत हो जाएगा ‘‘हत्या’’ है जिसके लिए कौन जिम्मेदार है। जब से पत्रकारिता कॉरपोरेटों के हाथों में गई है वह अपना वजूद खोती जा रही है। यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो इसके परिणाम भविष्य में बहुत ही खतरनाक हो सकते हैं।