सोमवार, 19 मई 2008

क्योंकि जिन्दगी इसी का नाम है.

जीतना ही जिन्दगी का नाम नही होता है,
हार कर भी खुश रहना हमारा काम होता है।
दूसरों को छल कर बहुत धनवान होते हैं
खुशी का इक लफ्ज भी उन्हें दुश्वार होता है।
हार गए यदि सारे दांव, छल गया तुमको संसार
खुश होकर अब रहना सीखो,
डरने से अब क्या काम
देखे बहुत है जहाँ में इन्साँ को
सभी तन्हा, सभी उदास नजर आते हैं।
बहुत है जो इक बाजी हारने के बाद हार मै लेते हैं।
दूसरे इसे जितने को उत्सुक नजर आते हैं।
उनके लिए हारना और जीतना ही जिन्दगी है
क्योंकि यही हार और जीत ही जिन्दगी का नाम है।

महगाई

कहो जी, क्या हल है।
घर में तो सभी खुशहाल हैं।
फ़िर भी तोरी की तरह क्यों खस्ता हाल है।
पगार बढने को सुनकर तो चेहरा बड़ा लवलीन था
फ़िर क्यों आज यह सुखाया फूल है।
किसान कहते हैं, मजदुर कहते हैं,
या यूं कहे कि सभी कहते हैं
जो अपना व्यवसाय करते हैं।
सरकार तुम्हारी पगार बढाये
हम अपनी बढा लेगे
फ़िर महगाई का रोना क्या रोना
चाहते क्या हो धनवान होना न
सो तो हो गए
अब पैसा क्या करोगे रखकर
अरे भाई! महगाई है उसे खर्च देना
जैसे थे वैसे ही रहोगे।

वह मुझसे बहुत प्यार करती है

आयु कोई दो साल होगी। लगाव इतना कि पूछिये मत। बात किसी और कि नही मेरे घर के बगल में रहने वाली लडकी मुस्कान। जिसे हम सभी प्यार से मुक्कू कहते हैं। जब उसका जन्म हुआ तब तक मुझे इस शहर में आये मुश्किल ले दो महीने हुए थे।

सभी का प्यार करने का अंदाज अलग-अलग होता है। मैं उसे जितना मारता हूँ उतना ही प्यार भी करता हूँ। वह मार खाने के बावजूद मेरे पास ही रहती है। लेकिन खाने की कोई वस्तु किसी को नही देती है। मुझे भी। उस दिन पता नही उसके दिमाग में क्या बात आई कि वह सेब का एक टुकडा लेकर मेरे घर आ गई। उस समय मेरी माँ भी मेरे पास आई हुई थी। उसने सेब को लेकर आते ही मेरी माँ से कहा" उमेथ भइया " मैं किसी काम से बाहर गया हुआ था । माँ ने कहा दिया वह बाहर गए हैं क्यों?

वह इसे समझ तो नही सकी पर खड़ी रही। मेरे पिता जी भी घर पर ही थे। माँ ने कहा "मुक्कू इसे मुझे दे दो" फ़िर उसने कहा" नही भइया " उसे इतना विश्वास दिलाने की कोशिश की गयी कि मैं तुम्हारे भइया को दे दूंगी। परन्तु वह नही मानी। अंत में माँ ने कहा अच्छा रख दो जब भइया आयेंगे तो खा लेगें। वह ख़ुद बेड पर चढकर एक आलमारी पर रख देती है । लेकिन मेरे माता-पिता को नही देती है। उसे इस बात का विश्वास ही नही था कि ये उन्हें दे देगें। उसे वह मुझे देना चाहती थी, मगर क्या करे। बाद में उसने मुझसे कुछ कहा तो नही परन्तु उसका चेहरा देखकर मैं समझ गया कि वह मुझसे नाराज है। उसकी नाराजगी दूर करने का उपाय यही है ही कि उसे गोद में उठा लो। मैंने उसे उठा लिया और वह खुश हो गयी।

कृषक की दास्तान

कर्जों के तले दबे पहले से ही हैं भगवन
आप ने यह क्या शितम ढाया है
कोई मेरे दुःख का तो साथी नही था
आप पर ही तो हमें विश्वास था ।
छः महीने से -छः महीने से इंतजार था
घर में आनाज आएगा,
हमें भी एक दिन गम से निजात मिलेगा।
महीना चैत का और गेहूं खेत में पके हैं।
घर में एक दाना नही है
और यह
बेवक्त बारिस का कहर
क्यों ढाया है आपने
सच है
विपत्ति में आप भी हमारे नही हैं।
आप तो ऐसे नही थे
फ़िर क्यों किया यह विश्वासघात
हमें आपहिज क्यों बना दिया
इसीलिए कि हम बेबस हैं न ।

ये कैसा लोकतंत्र

आओ एक झुनझुना बजायें
आजादी का गीत गाकर
अपने मन को संतोष दिलाएं। आओ....... ।
सरकारें बदलती रही कुर्सी वही रही
जनता के उपर पुलिस भी मेहरबान रही।
कैप्टन हों या बादल दोनों नेता ही हैं।
पुलिस उनकी लाठी और जनता भैस है
अपना हक मांगना, और न मिलाने पर रोष करना
उनके लिए गलत बात है
नेता जी बोले चुनाव के समय -
महिला देश का आधार हैं,
लोकतंत्र में उनकी अलग पहचान है
सरकार हमारी होगी तो कष्ट दूर तुम्हारे होंगे
पर हाय
सरकार तो बन गई बादल की
और हमें झुनझुना दे दिया
कह दिया
बच्चों बजाना मना है।
अधिकार संविधान में है
पर
मांगना मना है।

रविवार, 18 मई 2008

घर के चिराग से लगी आग

घर कि स्थिति ख़राब होने पर घर का ही दीपक उसे जलाने में कोई कोर-कसार नही छोड़ता है। खाक का एक ढेर बना कर वह इस बात पर खुशी जाहिर करता है कि मुझमें चींटी की जैसी ताकत होने पर भी हाथी को मार दिया । जब बात चींटियों के सरदार के अमले का हो तो बात ही कुछ और ही है। उपर से सरकार मेहरबान नीचे से जनता का सम्मान। भला और क्या चाहिए मुझे अपने काम को अंजाम देने के लिए।

आये दिन सरकार नशीले पदार्थों के व्यापार को रोकने के लिए बनती है। कानून बनाकर उसकी धज्जियाँ उड़ना भी उसे अच्छी तरह से आता है। कानून बनने वाले अपने को कानून का बाप समझाते हैं और कानून को अपना बेटा। अर्थात मैं इससे बड़ा हूँ तो क्यों न इस पर शासन करूँ। अकाली दल के एक नेता ने जिस प्रकार से हेरोइन को एअरपोर्ट पर ले जा रहा था और पकड़ा गया। यह अनुमान लगाया जा रहा हैं कि वह करीब २२किलो ७५०ग्राम थी। अर्थात लगभग २२करोड रुपये की। यह बात अच्छी हैं कि उसे पुलिस वालों ने नही पकड़ा नही तो एक ही डाट मैं छोड़ दिए होते। ये वही नेता महाशय हैं जो विधानसभा में इस बात पर जब बिपछ में होतें हैं तो सरकार की आलोचना करते हैं।

कभी-कभी ऐसा लगता हैं कि अवैध नशीले पदार्थ का व्यापार करने में राजनेता के प्यारे ज्यादा ही उत्सुक हैंसंइया भइल कोतवाल, अब डर कहे का।" इस बात को सार्थक सिद्ध करना उनके बाएं हाथ का खेल लगता हैं। आखिर कब तक घर का ही चिराग घर को जलाएगा। जहाँ तक इस देश के बार में मैंने समझा हैं वह यह हैं कि यहाँ अगर किसी बात को खुली छोड़ दी जाए तो शायद वह रुक सकती हैं।

एक बार मेरे गाँव में एक जादूगर जादू दिखाने आया था। मंगलवार का दिन था। बाजार लगी हुई थी। मै अपने एक अध्यापक महोदय के साथ गया था। सभी लोग वहां बच्चों से कह रहे थे पीछे-पीछे और पीछे हटो। बच्चें आगे बढते जा रहे थे। ये महोदय पहुचते ही कहा और आगे बढो। बच्चे पीछे लौटने लगे। मुझसे रहा नही गया। मैंने पूछे लिया आखिर आप आगे बढने को क्यों कहा रहे हैं। उन्होंने बताया कि ये सोच रहे हैं कि लोग हमें आगे बढने से मना कर रहे हैं कि आगे कोई डर नही हैं। इन बातों का उल्टा असर अधिक होता हैं। इसीलिए आगे बढने को मैंने कहा था। इस बात को मै कई जगह पर सत्य होते देख चुका हूँ।

मैं सोचता हूँ कि अगर इस पर से भी सरे बंधनों को हटा दिए जाए तो शायद नशीले पदार्थों का कारोबार कुछ लोग ही करेगें और अधिकतर इससे बच सकते हैं। कम से कम हमारे नेता तो इस मुहावरे से निजात पा ही जायेगे कि "Ghar का ही चिराग घर को जला रहा हैं।"


गुरुवार, 15 मई 2008

याद आ गयी

तेरे इस रूप यौवन को देखा ही था कि
मुझे मेरी प्रेमिका याद आ गयी।
जब कभी तुमसे बातें हुई तो
उसके साथ हुई बातें याद आ गयी।
निकलता हूँ जब कभी कालेज के लिए
तेरी मुलाकात से उसकी मुलाकात याद आ जाती है।
चाहता बहुत हूँ भूल जाऊ उसे पर
भुलाने के बहने वह याद आ गयी।
कभी-कभी तो तुमको मुझसे गुस्सा होना
मुझे उसके रूठने की याद दिला जाती है।
जब तुम मुझसे बहुत दूर होती हो तो
दिल की तस्वीर में चेहरा देखा तुम्हारा और वह याद आ गयी।