गुरुवार, 27 दिसंबर 2007

नया साल

बेटा तुम भी एक प्रतिज्ञा कर लो
नया साल है कुछ नया कर लो।
इन शब्दों को सुन रहा हूँ मैं
आज से दस साल से
सभी माता-पिता यही कहा करते है
मैं यही सोच रहा था
कि .....................
मेरे एक दोस्त ने आवाज लगा दी
चल यार मैच खेल कर आते है
में आव देखा न ताव चला गया मैच खेलने
लौटा तो सोचा कि शाम से मिशन पर काम करुगा
लेकिन .........................
ता उम्र बीता दिया इसी सोच में
बस कल बस कल
करके ....

गुरुवार, 22 नवंबर 2007

एक ही वतन

कौन है इस जग में
जो दुखी न हो
पर अमूर्त चीज़ से भी जो दुखी हो
सच में वह महान है
दुनिया में हर रोज़ सब
इधर- उधर भागते रहते हैं
अपनी शांति के लिए
नही किसी और के लिए
तो ...............

मंगलवार, 20 नवंबर 2007

कौन-2

कौन है वह जो
सपनों में मेरे आती है।
प्यार, दुलार, स्नेह सारा
मुझ पर लुटा जाती है ।
बडे नाज़ से पालती है
अपना खून भी पिलाती है
बस एक ही तमन्ना दिल में रहती है
तुम सुखी रहो, फूलों-फलों
कौन है
चाहें जितना दुःख आये
कभी नही तुमको बतलाती
प्यार बराबर करती
हर मुश्किल से लड़ जाती
माँ है वह




सही समझा
फिर भी अपना धर्म तुम निभाते क्यों नही

बुढे माँ-बाप को घर में रखते क्यों नही

तेरे खुशियों के खातिर
दुःख का प्याला भी वह पीती है

तू
विकसित नही, कुत्सित है
अब तो अपना सुधार कर।।।

रविवार, 18 नवंबर 2007

कौन -1

जिसे खोजते हम मंदिर में
ढ़पली राग सजा करके
पत्थर की मूरत के आगे
हाय-हाय हम करते हैं
किसे खोजते?
खुदा
, राम, अल्लाह
कहाँ रहता हैं वह
चाहरदीवारी के अन्दर
शायद नही पंछी को ऊड़ना सुहाता है
पिजडा़ नही उसे भाता है
भगवान कैद नही रह सकता है

सर्वत्र दिखाई पड़ता है
मिलना चाहते हो उससे ?
हाँ ! पर कहाँ मिलेगा?
वहाँ तुम्हें सब देव मिलेगें
युध -आयुध के संग
जहाँ किसान मिट्टी खोदता












भूमि को हरी-भरी बनाता
जहाँ मजदूर पसीना बहा करके
सारेदेश को जग-मग करता
जाओगे वहाँ ?
नही ।
पर क्यों?
मैं पूजा करता हूँ उसकी
उससे प्रेम भी करता हूँ
पर नंगों के बीच में जाना
इसे सोच नही मैं सकता हूँ।

गुरुवार, 1 नवंबर 2007

बुधवार, 17 अक्तूबर 2007

स्वतंत्रता नाम की

आज के नागरिकों, तुम पूछो अपने से
क्या है तुम्हे स्वतंत्रता
सोचो
आज हम स्वतंत्र हैं जरुर
लेकिन
क्या हकीकत यही है स्वतंत्रता
जहां हमें रहने के लिए, खाने के लिए
पीने के लिए पानी नही है
कहीँ यही तो हमारे परतंत्रता की कहानी नही है
गुलाम कैसे हुए इसे भी सुनों
भारत विभाजित था अनेक खण्डों में
राजा लड़ते थे राजाओं से
देश की किसी को सोच नही थी
अपनी सल्तनत तक की देशभक्ति थी
समय में परिवर्तन आया
अंग्रेज भारत में आए
राजाओं को बंदी नही बनाया
उन्हें पेंशन की लालच दीं थी
हकीकत में देखें तो भारत आज वैसे ही है
जैसा बहुत पहले था
आज राजा नही नेता लड़ रहें है
कुर्सी के लिए देश के लिए नही
भारत जहाँ तक पीने का पानी नही पहुचा पाया
वहां आज सॉफ्ट ड्रिंक की बोतलें हैं
यह क्या है
शाम हो रही है सूरज ढ़ल रहा है
बह्रत की असुरक्षा का असार छा रहा है
वतन के नागरिकों वतन को बचा लो
भारत माता है असहाय है
उसकी लाज बचा लो

शनिवार, 13 अक्तूबर 2007

किताबों में बीता बचपन

कैसा यह बचपन है,
न खेलने की आजादी है, न घूमने की।
अपना भार लिए ढ़ोता रहूँ,
यही अब मेरा बचपन है।
जितना मेरा भार नही
उतनी भारी हैं पुस्तक
ऊपर से मैड़म की डॉट पडे
तो
आजादी कैसी है।
मैं चाह कर के भी
नही घूम सकता हूँ
हमारे ऊपर बॉस बने अध्यापक
प्रतिदिन का काम बताते
अंग्रेजी पढ़ना, हिंदी पढ़ना
कंप्यूटर की शिक्षा लेना
दिन आते रहे, जाते रहे
पता नही कब बीत गया बचपन
अब तो जीं मेरा घुटता जाता है
पुस्तकों को देख कर
कहीँ से थोडा मुझे राहत मिल जाये
तो
स्वर्ग का आनंद मैं महसूस कर लेता
अपने दिलों दिमाग में स्फूर्ति भर लेता।

सोमवार, 8 अक्तूबर 2007

गाँव- आदमी

फटे-पुराने कपड़ों में
करते हैं वो काम
मेहनत ही है उनका ईमान
खेती ही उनका साधन
सौंदर्य प्रसाधन का नाम न जाने
पर मिट्टी को ही माँ माने
उसी से शरीर को रंगना
ही अपना सौंदर्य वो माने

शिकवा भी उसी से,शिक़ायत भी उसी से
प्यार उसी से घृणा भी उसी से
दोस्त वही दुश्मन भी वही
वह कौन?
भगवान
सम्मान-मान सब ही उसका
कर्म को ही भाग्य वो माने
निष्ठुर नायक वह है जो
उनकी भी न प्रार्थना सुने
गाँव किसानों का है
आत्मा भारत की है गाँव
वो हमारे आत्मा हुए तो
वही हमारे पूज्य हुए।

अन्तरजातीय विवाह का सच

विश्व मे हो रहे संघर्ष तथा लड़ाइयों को अगर बारीकी से देखा जाय तो उसका मूल दो जातियों अथवा धर्मों के मध्य ही है। चाहे सिया-सुन्नी समुदाय हो या कोई और समुदाय उनके मध्य लडाई का कारण उनका धर्म ही है। धर्म और जाति व्यवस्था समाज में अपना पैर बहुत मजबूती के साथ जमे चूका है। ऐसे में हो रही इस विडम्बना को कि इसे धार्मिक गुरू या सरकार संचालित कर रही है, यह उचित नही है ।
एक ओर तो विकास के मार्ग पर बढते हुआ नित्य-प्रति ऊची-ऊची मंजिलों को छू रही है। परंतु इसके मूल मे जाति-प्रथा भी अपना प्रभाव बड़ा रही है। अधिक आरक्षण की मांग, आरक्षण के अन्दर आरक्षण आदि अनेक ऐसे कारक हैं जो सरकार की नीतियों में कहीँ न कहीँ कोढ़ को प्रदर्शित कर रही हैं। यदि भारत की सरकार इसे मिटाना चाहती है तो आरक्षण को पहले सा करना होगा
जाति धर्म समाप्त को धीरे-धीरे समाप्त करने में अंतर्जातीय विवाह काफी हद तक सफल हो सकती है। परन्तु इस देश में ये व्यव्स्थाएं इतनी मजबूत हैं कि आम आदमी को अंतर्जातीय विवाह करने की बात को सोचना ही मुश्किल है आज के समाज में ऐसा प्रतीत होता है कि क्रीमीलेयर के लिएअंतर्जातीय विवाह चाहे आधिकार है।"रंगीन दुनिया" मे रहने वाले लोग चाहे जिस जाति, धर्म या संप्रदाय के लोगों से शादी कर लें उन्हें इसकी छूट है। परन्तु इसी देश मे अगर कोई भी अन्य व्यक्ति इस प्रकार
की ग्क्स्ताखी करता है तो उसे इसाकी भारी-भरकम कीमत चुकानी पड़ती है। कभी-कभी तो वह समाज की जनता की क्रूरुता का शिकार होकर अपने जीवन कसा ही अंत कर लेते हैं। समाज में ऐसा कौन सा रोग है जो निम्नवर्ग या मध्यमवर्ग के लिए अभिशाप का कर्ण बन जाता है।
अभी हाल ही में प्रकाशित एक खबर के अनुसार जलन्धर में प्रेम-बिवाह करने की सजा यह मिली की उस नव दाम्पत्य को अपने आबरू अर्थात इज्जत मन -मर्यादा को तक पर रख कर मुह में काले रंग को लगा कर घुमाया गया। यह कौन सा समाज है जो प्रतिष्ठितों के लिए तो वरदान परन्तु माध्यम वर्ग के लिए अभिशाप है। इसी प्रकार की वारदातें प्रायः प्रकाश में आती रहती हैं। इससे केवल यही प्रतीत होता है कि आज भी मानव समाज ऊच-नीच के बंधनों में जकडा हुआ हैं।
भारत जैसे विकासशील देश में इस प्रकार के कार्य इसके विकास में रोड़ा बनने का कम कर रही हैं। राजनीतिक दल को जाति को वोट बैंक के रुप में देखती हैं और उन्हें आरक्षण देने की बात करती हैं। इस प्रकार जाति व्यवस्था को बढाने में राजनीतिक दल बहुत ही अधिक महत्व पूर्ण भूमिका निभा रहें हैं। हाल ही में राजस्थान में हुई घटना के पीछे जाति का ही मामला रहा है। आख़िर कब तक जाति व्यवस्था भारत में अपना प्रभुत्व बनाए रखने में सक्षम रहेगी। क्या इसे समाप्त करने का कोई रास्ता नही है। ऐसा तो नही कि किसी समस्या का समाधान न हो। जाति व्यवस्था को समाप्त करने का एक बहुत ही कारगर कदम होगा कि अंतरजातीय बिवाह को प्रोत्साहन मिले।
धीरे- धीरे ही सही प्रेम-बिवाह का जो रुप समाज स्वीकार करने से मुकर रह है,उसे स्वीकार करना ही पड़ेगा।अधिकतर प्रेम बिवाह अंतरजातीय होते हैं। अंतरजातीय बिवाह का फायदा यह होता हैं कि उनके बच्चे किसी एक जाति के नही होकर दो जातियों के होते हैं। इससे जाति के निर्धारण में भी कठिनाई आ जायेगी। अतः जाति को समाप्त करने में अंतरजातीय बिवाह को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिऐ।

वह महिला

वह कौन है जो गन्दे कपडों में
अपने बच्चो के संग मे
कूड़े उठाती फिरती है
कभी इस ढेर कभी उस ढेर पर।
दिन-भर वह चला करती है
वह कौन है जो नंगे पावों भी
कांटे पर ही चलती है
बस दो वक्त की रोटी के लिए
दुनिया का कबाड़ वह ढोती है

कोई उनकी इस दशा पार
क्यों ध्यान नही देता है
क्या सोई है देश कि मीडिया
या फिर रसूकों के गुलाम हुई है
जन सेवा का व्रत करने वाले
क्या वो भी इस पर सोचा है
सुरक्षा उन्हें क्या है
वे तो बस वोट बैंक है
उनको नही पता है कि
हम भी मानव के मानव है
तुम उठो, एक प्रणय करो,
काम करो, बस काम करो
निश्चय ही फल मिल जाएगा
बस सुबह फूल खिल जायेगा।

शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2007

मायावती की राजनीति

भारत का एक ऐसा भी राज्य है जहाँ से होकर ही केंद्र का रास्ता गुजरता है,वह है उत्तर-प्रदेश। इस प्रदेश की राजनीतिक कमान कैसे अपने पक्ष में किया जाए यह हर पार्टी की सोच होती है। पिछले १६ सालों से ऐसी सरकार नही बन सकी जो बिना गठबंधन हो। आख़िर क्या कारण है कि २००७ मे हुए विधानसभा के चुनाव ने बसपा को एक अकाल्पनिक जीत दर्ज की है।
उत्तर-प्रदेश काफी समय से एक गुण्डा राज्य बना हुआ था। वहां पर बहुत से ऐसे नेता पिछले कुछ सालों में हुए हैं जो जनता की भावनाओं को ताक पर रख कर शासन करते थे। मूलरूप से उत्तर-प्रदेश से सम्बन्ध रखने के कारण वहां पर होने वाली ज्यादती का एहसास मुझे भी अच्छी तरह से है। १०वी की परीक्षा २००३ मे जो शासन मायावती ने किया था उससे लोगों मे यह संदेशा अच्छी तरह से जा रहा था कि प्रतिभा को निखारने मे यह ठीक ही है। उस साल परीक्षा परिणाम का ग्राफ बहुत ही नीचे था। लेकिन उसके बाद मुलायम सिंह यादव कि सरकार और गृह परीक्षा तथा उसमे हुई नक़ल के कारण परिणाम का ग्राफ ऊपर तो जरुर उठा परन्तु शिक्षा का स्तर और भी नीचा हो गया। इंटर करने के बाद विद्यार्थिओं को किसी भी कालेज मे प्रवेश मिलना मुश्किल हो गया था। इससे वो भी इस सरकार से ऊब चुके थे तथा एक अच्छी और वह सरकार चाहते थे जो उनके जीवन मे एक नया आयाम लेकर आये।
उत्तर-प्रदेश कि अधिकतर जनता अशिक्षित है। उन पर पुलिस द्वारा किया जाने वाला अत्याचार उनके लिए असहनीय बनता जा रहा था। प्रशासन मे गुन्दगार्दी हो रही थी और उसका राजनीतिकरण हो गया था। सरकार केवल ऊचे रसूक वालों का ही ध्यान रखती थी। ऐसे में बेचारी भोली-भली जनता करे तो क्या करे। लगभग छः महीने का ही शासन का शासन इस जनसमुदाय को पसंद आ जाने के कारण ही लोगों ने अपना पूर्ण बहुमत मायावती की ही झोली मे डालने में हिचकिचाहट नही की।
२००३ मे जब मायावती उत्तर-प्रदेश की मुख्यमंत्री थी तो आलम यह था कि विद्यालय अपने समय पर खुलते थे। अध्यापक समय पर आते थे। सरकारी काम-काज आसानी से हो जाते थे। लोगों को थाने जाने मे भी डर नही लगता था। उनकी समस्यों को सरकारी कर्मचारी सुनते थे और उस पर अमल मे लाते थे। वही इसका उल्टा प्रभाव मुलायम सिंह यादव की सरकार मे देखने को मिला था। मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं किसी भी राजनीतिक पार्टी से संबंध नही रखता हूँ और देश का विकाश और मानवाधिकारों के हनन पर रोक ही मेरी पहली और अन्तिम प्राथमिकता है।
कुछ भी हो मायावती ने इस बार के चुनाव मे जो राजनीति अपनाई थी वह काफी हद तक सफल हुई है। इस दल के अन्दर सभी वर्गों और जातियों के लोगों को स्थान दिया था। तभी शायद इसका नारा " हाथी नही गणेश है,व्रह्मा,विष्णु, महेश है" यह दिया गया था। पहले दल को दलित दल या दलित लोगों का दल समझा जाता था। परन्तु इस बार के विधानसभा के चुनाव मे इस दल ने जिस प्रणाली को अपनाया वह चाहे उस क्षेत्र के आधार पर हो उम्मीदवारों का चयन किया या जाति के आधार पर परन्तु अभी यह गणित पुरी तरह से उसके पक्ष मे गयी है।
अब इन आने वाले में देखना है कि क्या मायावती अपने उद्देश्य में सफल हो पति है या नही। जैसा उन्होंने शुरू मे संकेत दिया उससे तो ऐसा लगता है कि वह अपने मूल तक पहुच जायेगी। विधायक दल की पहली बैठक ही अपने मे बहुत महत्व रखती है। इस बैठक मे उन्होंने स्पष्ट संकेत कर दिया कि अब असली परीक्षा की घड़ी आ गयी है तथा अपने आप को साबित करना ही होगा।
ऐसे मे अब मायावती के सम्मुख दो बड़ी चुनौतियाँ भी उत्पन्न हो गयी है। इन दोनों मे आपस मे कैसे संबंध बनायाया जाये यह एक कठीण प्रश्न है। सबसे बड़ी चुनौती गुंडाराज्य को समाप्त करना है। इसमें काफी समय लग सकता है। लेकिन क्या देश या उस राज्य की जनता को इससे ही सन्तुष्ट किया जा सकता है । उत्तर हमेशा नकारात्मक ही होगा। दुसरी चुनौती इस बात की है कि युवा शक्ति को अच्छे कामों मे कैसे लगाया जाए। विकास का कौन सा मार्ग अपनाया जे जिससे कम से कम विनाश हो। इनमे सम्बन्ध बैठाये बिना कोई भी कार्य इच्छित फल नही दे सकता है।


गुरुवार, 4 अक्तूबर 2007

दृष्टान्त तक

ले चल मुझे वहां पर
जहाँ बदल मिल जाते हैं भू से
कैसा जीवन है उनका
इसका आभास करा दे मुझको
उसी ओर से आये हवा
किसी अनजान की याद दिलाये
वह कौन वहां पर रहता है
उससे मुझे मिला दें
क्यों आज नही कल-कल करते हो
आज ही मुझे है उस पर जाना
आख़िर बात बता क्यों नही देते
तेरे मन का राज
जब तक जीवन की सांस चले
क्षितिज नही मिल सकता है
अपने उस अनजान प्रेमी से
नयन चार नही कर सकते है।

ज़िन्दगी

उठने,गिरने, फिर से चलने का नाम ही तो
ज़िन्दगी है।
जो सदा चले और चलती ही रहें वही तो
जिन्दगी है।
ठोकर खाए, रूक जाये, फिर चले वही तो
जिन्दगी है।

काश मैं भूल जाऊ


दिन का सारा कम अगर मैं
भूल जाऊ
रात को अच्छी नींद तो मैं
ले पाऊ
दुर्लभ जीवन कर देता है
कंप्यूटर का काम
ई-मेल बनाना, ब्लाग बनाना
काम पूरा करना है
शाम को पता चला
अभी तक का काम
सही नही है
फिर सोचा
सब कुछ भूल कर
एक नया परिचय बनाऊ
और उसी पर जीवन का
सारा भार डाल जाऊ
काश मैं यह कर सकता
तो जीवन ही बदल जाता
सूरज नया होता मेरे लिए
और मैं नया होता उसके लिए

बुधवार, 3 अक्तूबर 2007

दोस्त -मेरा

यार तू ही मेरा दोस्त है
जो कहता है वह करता नही,
जो करता है वह कहता नही
ग़ुस्सा आती है पर क्या करू
मेरी भाषा यहाँ तू ही समझता है
अब तो मुझे डर सा लगता है
तेरे साथ चलने में
तू चलता नही
और चलता है
तो
वादों, बातों, और भाषण पर
यह मुझे पसन्द नही
कर्म नही करता,
बातें बड़ी- बड़ी करता है
वादा करने में तो तू
नेता का भी गुरू निकला
उन्हें सिखाना वादे करना
और इसे और इसका काम करना
बस अब मेरे यार मुझे
थोड़ा तू आराम दें
वादें मत कर मुझसे॥

हे ! राम









हे
! राम
ये शब्द सुख के हैं या दु:ख के
यह तो पता नही
पर दो अक्तुबर को
दुनिया इसे सच का अंत मने
क्योंकी पिता जी नही रहे
चले गए अपने धाम को
महात्मा गाँधी केवल महात्मा थे
या फिर कुछ और
आज उनके आदर्शो को हम माने
उनकी जीवनशैली अपनाए
तो शायद दुनिया सुधर जायेगी॥

अपनी दिनचर्या बनाया

विकास के शिखर पर बैठे लोगों को देखकर
मेरे मन मे यह बात आई
कैसे उस शिखर पर पहुचू
जहां का मंजिल बहुत बड़ा है।
थोडा सोचा
चलो अपनी दिनचर्या बनाऊ
उस पर अमल करु
और आगे आऊ
बना डाली दिनचर्या
सुबह से शाम तक की
शाम से सुबह तक की
एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीता
फिर भूल गया यह सारी दिनचर्या
याद क्या रहता है
उठना, नहाना, खाना, पढना और
बाद में
सो जाना
जिंदगी बीत जाती है इसी में
सारे मानव जाति की अंत में बचत है जो
वह भी चिन्ता और सोच
के नाम चली जाती है
अंत में जाना ही है
यही मानव का जीवन है ॥





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कौन-मरा

आज मेरे सामने एक दुर्घटना घटी
साइकिल से मैं घर आ रहा था कि
कार ने एक आदमी को कुचल दिया
बेफ्रिक सभी दौडे चले जा रहे थे
सड़क के पर पड़ा था वह
तड़पता हुआ
अंत हो गया उसका
सुचना पुलिस को भी गई
वह आई तो देखा खेल ख़त्म है
तब्तीश के लिए लोगों से बयान मागें
तो सभी ने कह दिया
साहब ! हम अभी यहाँ आये
किसी ने कुछ नही कहा
वह मरा नही
न जिंदा है
मरी तेरे भीतर कि आत्मा है
तू देखता है पर सच नही कह सकता है
ये तेरी बेबसता है या कमजोरी है
मरे उसे देखने वाले हैं
जो देखते हुए भी कुछ बोल नही सकते हैं ॥