सोमवार, 8 अक्तूबर 2007

गाँव- आदमी

फटे-पुराने कपड़ों में
करते हैं वो काम
मेहनत ही है उनका ईमान
खेती ही उनका साधन
सौंदर्य प्रसाधन का नाम न जाने
पर मिट्टी को ही माँ माने
उसी से शरीर को रंगना
ही अपना सौंदर्य वो माने

शिकवा भी उसी से,शिक़ायत भी उसी से
प्यार उसी से घृणा भी उसी से
दोस्त वही दुश्मन भी वही
वह कौन?
भगवान
सम्मान-मान सब ही उसका
कर्म को ही भाग्य वो माने
निष्ठुर नायक वह है जो
उनकी भी न प्रार्थना सुने
गाँव किसानों का है
आत्मा भारत की है गाँव
वो हमारे आत्मा हुए तो
वही हमारे पूज्य हुए।

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