बुधवार, 3 अक्तूबर 2007

हे ! राम









हे
! राम
ये शब्द सुख के हैं या दु:ख के
यह तो पता नही
पर दो अक्तुबर को
दुनिया इसे सच का अंत मने
क्योंकी पिता जी नही रहे
चले गए अपने धाम को
महात्मा गाँधी केवल महात्मा थे
या फिर कुछ और
आज उनके आदर्शो को हम माने
उनकी जीवनशैली अपनाए
तो शायद दुनिया सुधर जायेगी॥

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