सोमवार, 2 मई 2011

वह किसी और की होने जा रही है

जो कभी मेरी हुआ करती थी
या
जिसे मै कभी अपनी माना करता था
अब किसी और की होने जा रही है
कितने नाज़ो से प्यार जगाया था
आज
वह प्यार किसी और का होने जा रहा है
वह किसी और की होने जा रही है
न शिकवा कर सकता हूँ
न इसकी शिकायत कर सकता हूँ
प्यार की तौहीन होगी
और मै तौहीन नहीं कर सकता
अब तो
एक ही अरमान है इस दिल का की
वह कहीं भी रहे
बस खुश रहे
और बस
खुश रहे

रविवार, 1 मई 2011

शुरुआत भारत ही करता है

काम अच्चा हो चाहे बुरा उनका उदय भारत में ही होता है. भारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है. शून्य से लेकर चन्द्रमा तक जाने का रास्ता भारत ने ही बनाया है. सभ्यता की शुरुआत भी सबसे पहले यही हुई थी. और यही वह भारत है जो विश्व गुरु रहा है. आज मै भारत के बारे में कोई भी बुरी बात नहीं कहने जा रहा हूँ. अच्छी बातें दिमाग को शक्ति देती है. इसलिए आज से केवल अच्छी बातें ही होंगी. चलो फिर शुरू किया जाये भारत की कुछ वर्तमान समय की उपलब्धियों के बारे में
सबसे पहले हम जूता या चप्पल फेंकने की बात लेते है. बुश पर मुंतजर अल जैदी ने जूता क्या फेंका उन्हें इसका जन्दाता मन लिया गया. जो इतिहास को गलत साबित करता है. इतिहस लिखने में अंग्रेजों ने हमेशा ही भारतियों को नीच दिखने को कोशिश की है. तो अब क्यों नहीं करेंगे. अगर ऐसा न होता तो जूता फेंकने के जनक हमारे कल्मानी साहब होते. लिकिन यह तो उनके साथ धोखा है. आज यह नए ट्रेंड में है और उनका कोई नाम भी नहीं ले रहा है.
अब बिडम्बना देखिये. बेचारे कल्मानी साहब ने इस परम्परा को इजाद तो किया लेकिन खुद ही जूता खा गए. ये तो शंकर जी के द्वारा भष्मासुर को दिया गया वरदान लग रहा है. बेचारे कितने दिन सेना में काम किये. देश के लिए कितनी लड़ाई लड़ी, देश को गर्त में ले जाने के लिए कितना भ्रष्टाचार किये और आज जूता भी खा रहे हैं.
तो मेरे प्यारे भाइयों, अब कभी भी यह मत कहना की जूता फेंकने की परम्परा की शुरुआत सबसे पहले मुंतजर अल जैदी ने की थी. इसे हमारे महानता की हद पर चुके कभी नेता रहे आज भी हैं कल्मानी ने की है. न विश्वास हो तो २७ अप्रैल का नव दुनिया भोपाल का संस्करण देख सकते हैं.