गुरुवार, 4 अक्तूबर 2007

काश मैं भूल जाऊ


दिन का सारा कम अगर मैं
भूल जाऊ
रात को अच्छी नींद तो मैं
ले पाऊ
दुर्लभ जीवन कर देता है
कंप्यूटर का काम
ई-मेल बनाना, ब्लाग बनाना
काम पूरा करना है
शाम को पता चला
अभी तक का काम
सही नही है
फिर सोचा
सब कुछ भूल कर
एक नया परिचय बनाऊ
और उसी पर जीवन का
सारा भार डाल जाऊ
काश मैं यह कर सकता
तो जीवन ही बदल जाता
सूरज नया होता मेरे लिए
और मैं नया होता उसके लिए

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