सोमवार, 8 अक्तूबर 2007

वह महिला

वह कौन है जो गन्दे कपडों में
अपने बच्चो के संग मे
कूड़े उठाती फिरती है
कभी इस ढेर कभी उस ढेर पर।
दिन-भर वह चला करती है
वह कौन है जो नंगे पावों भी
कांटे पर ही चलती है
बस दो वक्त की रोटी के लिए
दुनिया का कबाड़ वह ढोती है

कोई उनकी इस दशा पार
क्यों ध्यान नही देता है
क्या सोई है देश कि मीडिया
या फिर रसूकों के गुलाम हुई है
जन सेवा का व्रत करने वाले
क्या वो भी इस पर सोचा है
सुरक्षा उन्हें क्या है
वे तो बस वोट बैंक है
उनको नही पता है कि
हम भी मानव के मानव है
तुम उठो, एक प्रणय करो,
काम करो, बस काम करो
निश्चय ही फल मिल जाएगा
बस सुबह फूल खिल जायेगा।

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