गुरुवार, 4 अक्तूबर 2007

दृष्टान्त तक

ले चल मुझे वहां पर
जहाँ बदल मिल जाते हैं भू से
कैसा जीवन है उनका
इसका आभास करा दे मुझको
उसी ओर से आये हवा
किसी अनजान की याद दिलाये
वह कौन वहां पर रहता है
उससे मुझे मिला दें
क्यों आज नही कल-कल करते हो
आज ही मुझे है उस पर जाना
आख़िर बात बता क्यों नही देते
तेरे मन का राज
जब तक जीवन की सांस चले
क्षितिज नही मिल सकता है
अपने उस अनजान प्रेमी से
नयन चार नही कर सकते है।

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