ढ़पली राग सजा करके
पत्थर की मूरत के आगे
हाय-हाय हम करते हैं
किसे खोजते?
खुदा, राम, अल्लाह
कहाँ रहता हैं वह
चाहरदीवारी के अन्दर
शायद नही पंछी को ऊड़ना सुहाता है
पिजडा़ नही उसे भाता है
भगवान कैद नही रह सकता है
सर्वत्र दिखाई पड़ता है
मिलना चाहते हो उससे ?
हाँ ! पर कहाँ मिलेगा?
वहाँ तुम्हें सब देव मिलेगें
युध -आयुध के संग
जहाँ किसान मिट्टी खोदता
भूमि को हरी-भरी बनाता
जहाँ मजदूर पसीना बहा करके
सारेदेश को जग-मग करता
जाओगे वहाँ ?
नही ।
पर क्यों?
मैं पूजा करता हूँ उसकी
उससे प्रेम भी करता हूँ
पर नंगों के बीच में जाना
इसे सोच नही मैं सकता हूँ।
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