रविवार, 30 नवंबर 2008

क्या चाहते हो?

फूल खिलने से पहले ही मुरझा जाए
उस बाग के माली क्या चाहते हैं।
अपने ही घर में हम सहमें रहें
इस घर के मालिक क्या चाहते हैं।
वारदातें होती रहें और लोग मरते रहें
इस देश के नेता क्या चाहते हैं।
जले सारा देश आतंकवाद की आग में
हमारे नीतिनिर्माता क्या चाहते हैं।
अभी तक जितने मरे इन वारदातों में
उनसे भी अधिक क्या चाहते हो
कुछ नही चाहते हैं।
चाहोगे भी तो क्या चाहोगे?
अपनी कुर्सी के लिए वोट चाहोगे
वोट के लिए एक दुसरे को लड़वाओगे
एक का पक्ष तुम और दुसरे का तुम्हारा विपक्षी ले लेगा
और कुर्सी Tअरह बची रहेगी
धिक्कार है तुम्हारी इच्छशक्ति की
कोई भी तुम्हारे घर में तुम्हे डरा जाता है
और तुम
" हम इसकी निंदा करते हैं "

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