हमारे देश में आज भी यदि कोई काम गलत हो
जाए या नुकसान हो जाए या मैच में हार हो जाए तो उसके लिए नारी को जिम्मेदार ठहराया
जाता है. कहा जाता है कि इसकी वजह से हमारा काम ख़राब हुआ. लोग अपनी गलती को छुपाने
के लिए नारी को दोषित करते हैं और कहते हैं कि इसके कारण हमारा कोई भी काम सही से
नहीं हो पा रहा है. जब एक लड़की की शादी होती है और वह दुल्हन, लक्ष्मी के रूप में
ससुराल जाती है. उस समय उसके ससुराल में कोई दुर्घटना घट जाए तो तो उस लड़की के
माथे दोष लगाया जाता है की यह डायन कहाँ से आई है. आते ही नुकसान होना शुरू हो
गया. उस दुर्घटना चाहे किसी और की गलती से हुआ हो. सारा दोष उस लक्ष्मी जैसी बहु
पर डाल दिया जाता है. तथा उसे डायन कहने लगते हैं.
कई
मायने में वर्तमान में पुरुषों से महिलाएं बहुत आगे हैं. बोर्ड परीक्षाओं के
परिणाम से इसकी पुष्टि की जा सकती है. पढाई हो या खेल कूद का मैदान, प्रशासनिक
सेवा हो या देश की सेवा, चिकित्सक हो या शिक्षक हर किसी कार्य क्षेत्र में वह बढ़चढ़
भाग लेती हैं और आगे भी निकलती हैं.
भारत में महिलाओं का एक सशक्त इतिहास है.
विज्ञान के क्षेत्र में कल्पना चावला से लेकर खेल के मैदान में सयाना नेहवाल,
राजनीती में इंद्रा गाँधी, सोनिया गाँधी, ममता बनर्जी, मायावती, उमा भारती,
प्रतिभा पाटिल सेवा क्षेत्र में चंदा कोचर, इंद्रा नुई, किरण बेदी, मदर टेरेसा,
स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मी बाई, देवी आहिल्या बाई, रजिया सुल्तान, बेगम
हजरत महल आदि के इतिहास को भुलाया नहीं जा सकता है.
ऐसा सशक्त इतिहास होने के बावजूद हमारे
देश के लोग टोने-टोटके जैसे भ्रम में पड़े हुए हैं. जो अपना दोष किसी नारी पर थोप
देते हैं. भारत देश इतना आगे बढने के बावजूद भी कहीं न कहीं बाकि देशों के मुकाबले
पीछे है. अनपढ़ लोग को कहने को ही बहमी माने जाते हैं. जबकि यहाँ तो पढ़े लिखे लोग
भी विश्व कप में हार का दोष अनुष्का शर्मा पर लगा देते हैं. गौरतबल है की सिडनी के
इस क्रिकेट स्टेडियम में ४२ हजार लोगों के बैठने की जगह है. इन दर्शकों में एक
अनुष्का शर्मा भी थी जो सिडनी में भारत का मैच देखने गई थी. भारत ऑस्ट्रेलिया से
अपना मैच हार गया. इसके लिए ४२ हजार में से किसी एक को जिम्मेदार हमारी सोशल
मीडिया ने ठहराया. वह थी अनुष्का शर्मा. विराट कोहली के एक रन पर आउट होना जैसे
अनुष्का की गलती हो. क्या अनुष्का शर्मा सिडनी मैच देखने न जाती तो विराट कोहली
आउट न होते और भारत मैच न हारता.
किसी भी खेल में जीत और हार खेल के मैदान
में तय होता है न कि स्टेडियम में बैठे लोगों के भाग्य से. खेल मैदान में लिया गया
फैसला और हमारा प्रदर्शन हमारी जीत या हार का कारण है. इसके लिए किसी भी प्रकार से
किसी महिला को दोषी ठहराया जाना हमारी कुंठित मानसिकता को दर्शाता है. यह हमें
बहुत ही अच्छी तरह से इस मैच में दिखाई दिया.
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