गुरुवार, 28 अप्रैल 2011
आया मौसम गरमी का
आइसक्रीम और तरबूजे का
सब कहते है गर्मी बहुत है
लेकिन मजा तो इसी में है
कहीं भी रात बिता लो भाई
न बिस्तर कि चिंता न चादर की जरुरत
कहीं भी सो जाओ
खाने की भी चिंता न करो
शादी का मौसम है ये
एक कपडा अच्छा सा रख लो भाई
कहीं भी पहुँच कर पार्टी मना लो
कितना प्यारा मौसम है
इसे बुरा न कहो भाई
यहां सब नंबर एक हैं
किसी भी प्रतियोगिता में पहला स्थान तो सभी प्राप्त करना चाहते हैं लेकिन क्या अपने कभी इस बात पर सोचा है कि सभी पहले स्थान पर हो भी सकते हैं। वह भी एक ही समय में। नहीं न। आइए हम आपको बताते हैं एक ऐसी दुनिया की कहानी जहां अधिकतर लोग पहले स्थान पर हैं। इस दुनिया का नाम है मीडिया की दुनिया। मेरा मतलब खबरों की दुनिया। यहां कोई भी दूसरे स्थान पर रहना पसंद नहीं करता है। हमें चाहिए तो पहला स्थान ही चाहिए। ये कितने भी दो नंबर के धंधे करें लेकिन रहेंगे पहले ही स्थान पर।
मध्यप्रदेश साहित्य, संगीत और षिक्षा का केन्द्र माना जाता है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की तो बात ही निराली है। कम से कम 15 हिंदी दैनिक यहां से निकलते हैं जिनकी शाखाएं पूरे हिन्दुस्तान में नहीं हैं तो भी दिल्ली में तो हैं ही। इन 15 में सभी पहले स्थान पर ही बरकरार हैं। इसको समझने के लिए खेल का उदाहरण लिया जा सकता है। खेल एक ऐसा शब्द है जो हॉकी के लिए भी प्रयुक्त होता है तो क्रिकेट के लिए भी। लेकिन सभी खेलों में कोई न कोई पहले स्थान पर रहता है। वही हाल भोपाल की मीडिया का है। यहां कोई पाठक संख्या में पहले स्थान पर है तो कोई बढ़त में पहले स्थान पर है। कोई नंबर एक उभरता हुआ अखबार है तो किसी में नंबर एक है। हद तो यह हो जाती है कि कोई समाचार पत्र अपने को विज्ञापनों में पहले स्थान पर रखना षुरु कर देता है।
अरे भाई हम समाचार पत्र क्यों खरीदते हैं। विज्ञापन देखने के लिए या खबरों को पढ़ने के लिए। भास्कर एक ऐसा समाचार पत्र है जो अपने को विज्ञापन में प्रथम स्थान पर बताता है। भविष्य में अगर पत्रकारिता का इतिहास लिखा जाएगा तो एक बात यह जरुर लिखी जाएगी कि भारत का पहला विज्ञापन समाचार पत्र भास्कर है। क्योंकि यह खबरों की अपेक्षा विज्ञापन को ज्यादा महत्व देता है। यह समाचार पत्र यह मान कर चलता है कि इसके पाठक समाचार नहीं पढ़ना चाहते हैं वे तो केवल खरीददारी करने के लिए विज्ञापन देखेंगे और सामान खरीदने चले जाएंगे। देष दुनिया में क्या हो रहा है इसको इससे कोई वास्ता नहीं है।
कभी भोपाल में पहले स्थान पर रहने वाला समाचार पत्र नई दुनिया ने फिर से बढ़त करना शुरु कर दिया है। यह उसका दावा है मेरा नहीं। कौन से श्रोत से आकड़े लिए गए हैं यह बात केवल नई दुनिया को पता है और किसी को नहीं। किसी ने इसके संपादक, अरे नहीं संपादक तो कुछ होता ही नहीं है मालिक जो संपादक से भी बड़ा है से कह दिया कि इसकी पंच लाइन सबसे ज्यादा बढ़ता हुआ अखबार लिख दो और इसने लिख दिया। पाठक तो कुछ समझता ही नहीं है। हां इतना जरुर है कि ये मीडिया वाले आम नागरिक को भेड़-बकरी समझते हैं। अब जब यह समाचार सबसे ज्यादा बढ़ रहा है तो सब इसे खरीदेंगे। क्योंकि एक भेड़ जिधर जाती है उसी ओर सभी भेड़ें चल देती हैं। पर क्या करें। ये आदमी निकले। ये एक ही रास्ते पर नहीं चालते हैं। यहां तो सही पर भी बहस होती है। तो झूठ को लोग कैसे स्वीकार कर लेंगे। लोग तो षायद न ही चलें इस रास्ते पर लेकिन जब समाचार पत्र अपना वितरण बताएगा तो यह जरुर बताएगा कि उसकी पाठक संख्या पिछले एक साल में इतनी बढ़ गई है। यही हाल कुछ अन्य समाचार पत्रों का भी है।
पहले स्थान पर बनने के लिए ये समाचार पत्र कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। स्थान पहला होना चाहिए चाहे वह किसी भी क्षेत्र में क्यों न हो। यही हाल रहा तो आने वाले समय में कुछ समाचार पत्रों की पंचलाइन कुछ इस प्रकार होंगी- झूठी खबरें परोसने में पहला स्थान, खबरों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने में पहला स्थान, सही खबरें छिपाने में पहला स्थान। आखिर रहना है पहले स्थान पर तो कुछ भी किया जा सकता है। जब कोई विज्ञापन में पहला स्थान लिखकर गौरव स्थापित करना चाहता है तो इसमें क्या बुराई है। यह पत्रकारिता की आत्महत्या नहीं गलत हो जाएगा ‘‘हत्या’’ है जिसके लिए कौन जिम्मेदार है। जब से पत्रकारिता कॉरपोरेटों के हाथों में गई है वह अपना वजूद खोती जा रही है। यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो इसके परिणाम भविष्य में बहुत ही खतरनाक हो सकते हैं।
मंगलवार, 12 अप्रैल 2011
तुम याद आओगे
सोमवार, 11 अप्रैल 2011
जरूरत कानून की नहीं,जरूरत अमल करने की है
गुरुवार, 31 मार्च 2011
शनिवार, 26 मार्च 2011
इस रंग बदलती दुनिया में
इन्सान कि नियत ठीक नहीं
निकला न करो तुम सज धज कर
इमान की नियत ठीक नहीं।
कुछ ऐसी ही नियत हमारे देश के नेताओ की हो गयी है। कोई भी इस हमाम में बचा नहीं है। सब के सब नंगे हो गये है। हमारे देश के प्रधान मंत्री को कुछ पता ही नहीं होता है कि क्या हो रहा है और सब अपनी अपनी गुल खिलते रहते हैं।
देश वासिओ! अब आपलोग भी अपनी नियत बदल लो या तो सजधज के निकलना बंद कर दो नही तो कब तुम्हारी इज्ज़त लुट जाएगी पता भी नहीं चलेगा।
शनिवार, 12 मार्च 2011
आखिर जनता ने ही उठा ही दी आवाज
मिस्र में जनता की आवाज को दबाने की जितनी भी कोशिश तत्कालीन सरकार ने कीआवाज उतनी ही बुलंद होती चली गई। नतीजा अब सब के सामने है। हुस्नी मुबारक को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा तथा साथ ही साथ देश निकाला भी मिला। वह जनता की ही आवाज थी जो इस करिश्में को कर दिखाई है। वही जनता अब अरब देशों में भी अपनी आवाज को उठा रही है। तो भारत की जनता कैसे पीछे रह सकती है। भारत के नागरिकों ने भी अपनी आवाज उठानी शुरु कर दी है। वह चाहे बहुत ही निचले स्तर से क्यों न हो। एक न एक दिन देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, लापरवाही, लालफीताशाही के खिलाफ जानता को अपनी आवाज उठानी ही थी। श्री श्री रविषंकर ने कह ही दिया है कि देश आज के नेतओं के बल पर नहीं चल सकता है। देश को जरुरत है ऐसे नेताओं की देश सेवा का केवल सपथ ने ले उसे कर दिखाने का जब्जा भी अपने अंदर विकसित करें।
मायावती शासित राज्य उत्तर प्रदेश में आखिर कर जनता ने अपनी आवाज को बुलंद कर ही दिया। बसपा के 54 विधायकों के उनके निर्वाचन क्षेत्र के नागरिकों ने ही रपट दर्ज कराने की मांग एक ऐतिहासिक पहलू बन सकता है। ऐसा भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में पहली बार हो रहा है कि किसी राज्य के नागरिकों ने अपने ही चुने प्रत्याशी पर उंगली उठाई हो। इससे एक चीज जो सिद्ध होती है वह यह है कि देश की जनता और खास कर बिमारु राज्यों के रुप में जाना जाने वाला उत्तर प्रदेश की जनता अब अपने अधिकारों के लिए जाग उठी है। उसे यह हवा कहां से मिली इसका तो पता लगाना संभव नहीं है। लेकिन यह एक साकारत्मक पहल है।
उत्तर प्रदेश की जनता ने अपने जिन विधायकों पर उंगली उठाई है उनमें सभी के सभी सत्ता के विधायक हैं। सत्ताधारी विधायक सत्ता के नशे में यह भूल जाते हैं कि जनता ने उन्हें किस लिए विधानसभा या लोकसभा में भेजा है। शिकायतों में सबसे अधिक मुरादाबाद मंडल के विधायकों पर है दूसरे स्थान पर मेरठ मंडल के छह विधायकों पर जनता ने विरोध दर्ज कराया है।
जनता के इस विरोध को देखते हुए सरकार को चाहिए की वह अब ऐसा विधायक पारित करे जिससे जनता अपने निर्वाचित प्रत्याशी को वापस बुला सके। अगर सरकार जनता के इस रुख को नजर अंदाज करती है तो उसे इसके बहुत बुरे परिणाम भोगने पड़ सकते हैं। मायावती जहां प्रदेश के जिले-जिले में घूमकर अपनी छवि को सुधारने की कोशिश कर रही है वहीं इससे उनकी छवि और धुमिल होती जा रही है। अपने प्रवास के दौरान मायावती क्या दिखाना चाहती हैं यह तो उनके भ्रमण के बाद वहां पर घटित घटना से साफ नजर आता है। उनके जाने से पहले ही उस क्षेत्र में मीडिया और नागरिकों को प्रतिबंधित कर दिया जाता है जहां उनका भ्रमण होना है। यह केवल जनता में दहशत पैदा करने का काम हो सकता है। इसका ताजा उदाहरण बुलान्दशाहर में देखने को मिला। मायावती अपने दौरे में बुलंदशहर गयी और वहां के प्रशासन ने उनकी सुरक्षा के इतने कड़े इंतजाम कर दिए कि "गीता बाल्मीकी" को अपनी जान गवानी पड़ गई। शहर में एक ओर मायावती के जिंदाबाद के नारे लग रहे थे और सीएम साहिबा तहसील के अभिलेख और अस्पतालों में मरीजों के हाल जानने के लिए जाने वाली थी। इसी ने अस्पताल की व्यवस्था में ऐसा परिवर्तन कर दिया कि आम नागरिक अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दे। अब ये मायावती हैं उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल तो हैं नहीं जो यह कह दें कि मेरे काफिले के लिए इतने प्रोटोकाल की आवश्याकता नहीं हैं। इन्हें तो केवल भूख है तो अपनी ताकत को दिखाने की उसकी कीमत चाहे जो हो।
2012 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में मायावती का प्रदेश दौरा उनकी छवि को कितना निखरता है यह देखने लायक होगा। कुछ भी हो , पिछले पांच सालों में जनता ने सत्ता पक्ष से जितनी परेशनी झेली है उतनी उसे किसी और से नहीं झेलनी पड़ी है। विधायकों के बुरे आचरण की खबरें उनके शासन काल में पूरे पांच से आती रही हैं। कहीं किसी विधायक ने कुछ किया तो कहीं किसी ने कुछ। पैसा ने देने पर इंजीनियर की हत्या तो जन्मदिन पर नोटों का हार। दौरे पर एसपी साहब जूती साफ करते हैं तो जन्मदिन पर डीआईजी साहब केक खिलाते हैं। पूरा का पूरा सरकारी कुनबा ही लगा है जी हजूरी में। इस दहशत में किसी राज्य की जनता कब तक रह सकती है। सरकार के गुलाम सरकारी कुनबा हो सकता है लेकिन जनता नहीं। शंखनाद जनता को करनी है जो वह कर चुकी है।