शुक्रवार, 22 मई 2015

मोदी के नाम खुला पत्र


प्रिय प्रधानमंत्री/प्रधानसेवक
आपने देश के विकास के लिए क्या किया यह तो हम नहीं बता सकते हैं. जहाँ तक मुझे पता है आपने विदेश यात्रा खूब की है. आप के अनुसार ही विदेशों में हमारी खूब इज्जत हो रही है. हमारी विदेश निति मजबूत हो रही है. लेकिन आपने अपनी विदेश यात्रा के दौरान जो बहस छेड़ा है, वह विचार का विषय बन गया है. भारत में जन्म लेना क्या शर्मिंदगी है या गर्व का विषय है. हमारे वैदिक ग्रंथों में कहा गया है कि जननी और जन्म भूमि स्वर्ग से भी महान होती है. ऐसे में हमें अपनी जन्मभूमि पर शर्मिंदगी कैसे हो सकती है.
भारत ऋषियों-मुनियों का देश रहा है. यदि भारत के इतिहास पर नजर डाला जाए तो हमें गर्व करने के बहुत से अवसर मिल सकते हैं. गलत तरीके से इतिहास का विश्लेषण करने के कारण ही हमें शर्मिंदा होना पड़ता है. शिक्षा के क्षेत्र में बात की जाए तो नालन्दा और तक्षशिला विश्वविद्यालय न केवल भारत में बल्कि विश्व में अपनी अमिट पहचान रखते थे. भारतीय शिक्षाविदों के द्वारा दिए गये सूत्र आज भी वैज्ञानिक शोध का आधार बन रहे हैं.
इतिहास में यदि महिलाओं की स्थिति का विश्लेषण किया जाए तो हम पाते हैं की गार्गी, रानी लक्ष्मी बाई बहुत से नाम ऐसे हैं जिन्होंने देश को सम्मानित किया है. भारत में आज भी परिवार जैसी संस्था अपना अस्तित्व बनाये हुए है. परिवार केवल हमें रहने के लिए स्थान नहीं देता है बल्कि हममें संस्कारों को रोपित करने का भी काम करता है. देश में वर्तमान में जो सामाजिक बुराइयाँ दिखाई दे रही हैं उनका अस्तित्व भी भारत में पुरातन काल में नहीं था. परिवार के टूटने के कारण ही आज के समय में यौन हिंसा, चोरी आदि बढती जा रही है.
भारत में इन बुराइयों का कारण यहाँ के लोगों में निरंतर देश प्रेम का हो रहा ह्रास है. देश का प्रधानमंत्री ही देश की टोपी को विदेशों में उछालने का काम कर रहा है. ऐसे में यदि कोई भी देश भारत के विषय में अपनी गलत अवधारणा बनाये तो कोई आतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए. जब कोई व्यक्ति अपनी इज्ज़त नहीं करता है तो उसकी इज्जत कोई नहीं करता है. यही सिद्दांत देश के साथ भी लागू होता है. आपके के द्वारा दिया गया बयान हमारे देश की इज्जत को बढाने वाला नहीं बल्कि हमारी इज्जत को कम करने वाला है.
भारत ही वह देश है जो किसी भी संस्कृति को अपने में समाहित करने की क्षमता रखता है. जो देश किसी को भी अपने में समाहित कर लेता है वह कभी समाप्त नहीं होता है. विश्व में कोई भी ऐसा देश नहीं होगा जहाँ पर इतनी विविधता हो जितनी भारत में है. संस्कृतियों की बात की जाए तो विश्व से आज के समय में बहुत सी संस्कृतियाँ इतिहास बन गयी है लेकिन भारतीय संस्कृति आज भी जीवित है और हमेशा जीवित रहेगी.
आप देश को देश न समझ कर कोई उत्पाद समझ रहे हैं. १६वीं शताब्दी में अंग्रेज भारत व्यापार करने के लिए ही आये थे. यदि हमारे देश के प्रधानमंत्री को इतिहास के विषय में थोडा बहुत भी ज्ञान  होगा तो उन्हें पता होगा कि अंग्रेज केवल व्यापार ही नहीं किये देश पर राज भी किया. कोई भी देश या व्यक्ति पैसा लगता है तो लाभ कमाना उसका लक्ष्य होता है. आज देश को फिर से १६विं शतब्दी की ओर ले जाया जा रहा है.
प्रिये प्रधानमंत्री आप महात्मा गाँधी को बहुत मानते हैं. ऐसा मैंने सुना है. दिल से मानते हैं या दिमाग से यह मुझे नहीं पता है. लेकिन इतना मैं पूरे विश्वास से कह सकता हु की आप उनकी नीतियों को नहीं मानते हैं. गाँधी कुटीर उद्योग से देश का विकास चाहते थे और आप उसके एकदम विपरीत. शायद मैं विषय से भटक रहा हु. गाँधी ने देश को देश माना और उन्हें भी देश पर गर्व था रामराज उनका सपना था. आप भी राम का नाम तो लेते ही होंगे. उन पर भी आपको शर्म आती होगी. मेरी एक छोटी सी सलाह मानिए. आप उस देश चले जाए जहाँ आपको शर्म न आये. व्यक्ति कहाँ पर जन्म लेगा यह तो निर्धारित नहीं कर सकता है लेकिन कहाँ पर रहेगा यह निर्धारित कर सकता है.
आपका शुभ चिंतक 

शनिवार, 16 मई 2015

समस्या सोच का है

हमारे देश में आज भी यदि कोई काम गलत हो जाए या नुकसान हो जाए या मैच में हार हो जाए तो उसके लिए नारी को जिम्मेदार ठहराया जाता है. कहा जाता है कि इसकी वजह से हमारा काम ख़राब हुआ. लोग अपनी गलती को छुपाने के लिए नारी को दोषित करते हैं और कहते हैं कि इसके कारण हमारा कोई भी काम सही से नहीं हो पा रहा है. जब एक लड़की की शादी होती है और वह दुल्हन, लक्ष्मी के रूप में ससुराल जाती है. उस समय उसके ससुराल में कोई दुर्घटना घट जाए तो तो उस लड़की के माथे दोष लगाया जाता है की यह डायन कहाँ से आई है. आते ही नुकसान होना शुरू हो गया. उस दुर्घटना चाहे किसी और की गलती से हुआ हो. सारा दोष उस लक्ष्मी जैसी बहु पर डाल दिया जाता है. तथा उसे डायन कहने लगते हैं.
    कई मायने में वर्तमान में पुरुषों से महिलाएं बहुत आगे हैं. बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम से इसकी पुष्टि की जा सकती है. पढाई हो या खेल कूद का मैदान, प्रशासनिक सेवा हो या देश की सेवा, चिकित्सक हो या शिक्षक हर किसी कार्य क्षेत्र में वह बढ़चढ़ भाग लेती हैं और आगे भी निकलती हैं.
भारत में महिलाओं का एक सशक्त इतिहास है. विज्ञान के क्षेत्र में कल्पना चावला से लेकर खेल के मैदान में सयाना नेहवाल, राजनीती में इंद्रा गाँधी, सोनिया गाँधी, ममता बनर्जी, मायावती, उमा भारती, प्रतिभा पाटिल सेवा क्षेत्र में चंदा कोचर, इंद्रा नुई, किरण बेदी, मदर टेरेसा, स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मी बाई, देवी आहिल्या बाई, रजिया सुल्तान, बेगम हजरत महल आदि के इतिहास को भुलाया नहीं जा सकता है.
ऐसा सशक्त इतिहास होने के बावजूद हमारे देश के लोग टोने-टोटके जैसे भ्रम में पड़े हुए हैं. जो अपना दोष किसी नारी पर थोप देते हैं. भारत देश इतना आगे बढने के बावजूद भी कहीं न कहीं बाकि देशों के मुकाबले पीछे है. अनपढ़ लोग को कहने को ही बहमी माने जाते हैं. जबकि यहाँ तो पढ़े लिखे लोग भी विश्व कप में हार का दोष अनुष्का शर्मा पर लगा देते हैं. गौरतबल है की सिडनी के इस क्रिकेट स्टेडियम में ४२ हजार लोगों के बैठने की जगह है. इन दर्शकों में एक अनुष्का शर्मा भी थी जो सिडनी में भारत का मैच देखने गई थी. भारत ऑस्ट्रेलिया से अपना मैच हार गया. इसके लिए ४२ हजार में से किसी एक को जिम्मेदार हमारी सोशल मीडिया ने ठहराया. वह थी अनुष्का शर्मा. विराट कोहली के एक रन पर आउट होना जैसे अनुष्का की गलती हो. क्या अनुष्का शर्मा सिडनी मैच देखने न जाती तो विराट कोहली आउट न होते और भारत मैच न हारता.

किसी भी खेल में जीत और हार खेल के मैदान में तय होता है न कि स्टेडियम में बैठे लोगों के भाग्य से. खेल मैदान में लिया गया फैसला और हमारा प्रदर्शन हमारी जीत या हार का कारण है. इसके लिए किसी भी प्रकार से किसी महिला को दोषी ठहराया जाना हमारी कुंठित मानसिकता को दर्शाता है. यह हमें बहुत ही अच्छी तरह से इस मैच में दिखाई दिया. 

सोमवार, 21 अप्रैल 2014

आओ खेती करें


अब आप सोच रहे होंगे
क्या पागलपन है।
अच्छा खासा पढ़ा-लिखा है
फिर इसे क्या पड़ी है
खेती करने की।
किसान आत्महत्या कर रहे हैं तो
लगता है इसे भी आत्महत्या करनी है।
दोस्त!
यह खेती खेतों में नहीं
दिमाग में होगी
फल-फूल नहीं
बातें उगेंगी
बेवकूफ बनाने की खेती होगी।
बजट के अनुसार
कोई लागत नहीं है
शिक्षा के अनुसार
कोेई जरुरत नहीं है।
जरुरत केवल जुगाड़ की है।
अब बताओ खेती करोगे मेरे साथ

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

चुनाव और बयान

चुनाव हो और भाषण न हो। ऐसा कभी हो सकता है। भाषण भी विकास को लेकर हो। क्या इससे चुनाव जीता जा सकता है या अपने विरोधी का षिकस्त दिया जा सकता है। नहीं न। तो। तो क्या ऐसा बयान दो कि मीडिया पागल हो जाए और बात चुनाव आयोग तक चली जाए।
अब आज़म खां को ही लिजिए। कारगिल में केवल मुसलमानों ने युद्ध जीता। हिन्दु वहां थे ही नहीं। हो गयी न बात। मीडिया कैसे नहीं इस बात को बढ़ती। पूरा खेल तो मीडिया में बने रहने का है। थोड़ा सा भी आप मीडिया से बाहर हुए कि आपकी राजनीति पर संकट के बादल मंडराने लगते हैं। खैर कारगिल कौन जीता यह तो सब जानते हैं लेकिन बेचारे आज़म खां चुनाव प्रचार से ही हार गए। अब वे चुनाव प्रचार भी नहीं कर पा रहे हैं तो चिट्ठी का सहारा ले रहें हैं। बात जो अपनी कहनी है। मैं चुनावी बयानों को एक-एक करके आपके सामने रखूगां। इसलिए आज के लिए केवल एक बयान ही काफी है। पढ़ो और मजा लो। चुनाव का मौसम है न।

    

रविवार, 13 अप्रैल 2014

बाबा बनने के लिए

यार! अपना खर्च चलाना मुष्किल हो रहा है। रोज का आना रोज का जाना हो गया है। महीना मुष्किल से गुजरता है। अब आषाराम बापू की अकूत संपत्ति को देखकर मन को एक नया आयाम मिल रहा है। धर्म का धंधा सबसे चंगा। सोच रहा हूं धर्म को अपना धंधा बना लूं। इसी के लिए यह प्रतिवेदन आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं। विचार आमंत्रित हैं। लेकिन केवल सकारात्मक या इस धंधे को आगे बढ़ाने वाले ही विचार हों। साथ ही यदि कोई सहयोग हो सकता है तो बहुत ही उत्तम है। हमारे इस धंधे में जुड़ने के लिए सहयोग राषि की जरुरत नहीं है, कुछ अनुदान से ही काम चल जाएगा। आर्थिक अनुदान नही ंतो भौतिक ही सही। भौतिक भी न हो तो आपकी उपस्थिति से ही काम चल जाएगा। बस अपने साथ कुछ भक्त लेते आओगे तो हमें अच्छा लगेगा।
आइए अब हम अपनी योजना का खुलासा करते हैं। कहा भी गया है कि किसी भी कार्य को करने के लिए उचित योजना का होना आवष्यक है। इसीलिए हम धर्म के धंधे को सफलता के षिखर पर पहुंचाने की योजना बना रहे हैं। कुछ बना भी चुके हैं। जो बना चुका हूं उन्हें आपके सामने परोस रहा हूं। मेरी योजना के मुताबिक पहले कुछ ‘महान बाबाओं’ साक्षात्कार लेना है। इन बाबाओं की फेहरिस्त में आषाराम बापू, निर्मल बाबा जैसों को ही शमिल किया गया है। जो छूट गए हैं उनसे माफी चाहता हूं। वे अपना नाम मुझे ईमेल कर सकते हैं। शर्त केवल यह है कि वे महान हों। जैसे ये दिए गए नाम हैं। 
वैसे मुझे साक्षात्कार देना अच्छा नहीं लगता है। गुप्त बात यह है कि आज तक कोई मेरा साक्षात्कार लेने आया ही नहीं। तो सोचा साक्षात्कार लेकर ही काम चला लेता हूं। योजना के अनुरुप ही मैंने आषाराम से संपर्क गांठा और मुलाकान भी हो ही गयी। आजकल आषाराम बाबा को खोजना बहुत आसान हो गया है। क्योंकि मीडिया उनकी पल-पल हर पल की खबर देता रहता है। बाबा जी से मुलाकात हुई तो मैंने पूछा-‘‘बाबा कैसे बना जाता है?’’ आषाराम थोड़े सोच में पड़ गए। फिर अपने बीते दिनों को याद करते हुए बोले-‘बच्चा! बाबा बनने के लिए आपको चमत्कार करना होगा। ऐसा चमत्कार जो आमिर खान की फिल्म ‘थ्री इडिएट’ में चतुर रामालिंगम राजू ने किया है।’’ मैं कुछ समझ नहीं पाया। अब मुझे एहसास हुआ कि फिल्में भी बाबा बनने के लिए देखना आवष्यक है। बाबा मेरी विवषता को समझते हुए अपनी बातों को स्पष्ट किया। जो बाबा ने कहा मैं आप से साझा नहीं कर सकता हूं। क्योंकि यह व्यवसायिक गुप्त बात है। अपनी रणनीति को चाहे वह किसी भी क्षेत्र की हो उजागर नहीं करना चाहिए। इसीलिए मैं आपको नहीं बता रहा हूं। पहली ही मुलाकात में बाबा ने अपने जैसे कईयों के नाम बता दिए जो आज मजे की जिन्दगी काट रहे हैं। साथ ही सफलता के नुस्खे भी हमारे सामने रख दिए। 
अब आपकी राय आपेक्षित है।
भारत का एक भावी
बाबा

आज भारतीयों की सादगी दिखी

हमारे देश में  नया साल दो बार आता है
एक धूम धमाके के साथ
और एक सादगी के साथ
पहले वाला नया साल आयातित है
दुल्हन है
इसलिए तो उस दिन खूब धूम धड़ाका होता है
और दूसरा
अपने देश का
वैसे आज भी आम भारतीय सादगी पसंद है
बाजार की चमक  गावं अभी बचे हैं
लेकिन कब तक
कोई इसे घर की मुर्गी दाल बराबर कह सकता है
पर मै तो इसे देश की महानता मानता हु
आपका क्या विचार है 

सोमवार, 31 मार्च 2014

आओ आज गम्भीर चिंतन करें

बहुत दिनों के बाद सोच रहा हु आज कुछ गम्भीर सोचु
लेकिन किस विषय में सोचु
कुछ मिल नहीं रहा है
राजनीती पर सोचने से पहले ही सोच
विचार आ जाता है कि
यह तो गंदे नाले से भी ज्यादा गन्दी हो गयी है
आरोप प्रत्यारोप और गली गलौच
राजनीती का विषय हो गया है
गरीबों के बारे में सोचने पर पता चलता है कि
उन पर तो पहले से ही गरीबों के ठेकेदारों ने कब्ज़ा जमा रखा है
केवल अपनी ठेकेदारी के वास्ते
शिक्षा के बारे में सोचने पर पता चलता है कि
यह तो महज पास होने के लिए हो गयी है
येन केन प्रकारेण परीक्षा पास हुआ जाया
कहीं भी गम्भीरता से कोई काम होता नहीं दीखता है
केवल दिखावा है
सब दिखावा है
निज स्वार्थ अपना हित है
इसी के लिए लोग आम और खास आदमी बन जाते हैं