एक पैग में बिक जातें हैं, जाने कितने खबरनबीस,
सच को कौन कफ़न पहनता, ये अखबार न होता तो.
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प्रशांत कुमार
जब विज्ञापन देने वाले ही बादशाह हों तो कामगार लोग सिर्फ़ शांत उपभोक्ता हो सकते हैं समाचार का एजेंडा तय करने वाले सक्रिय लोग नहीं.
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संजय कुमार श्रीवास्तव
हमेशा समाज का बौद्धिक सोच वाले बुद्धिजीवी वर्ग ही दुविधाओं का समाधान करता था..परन्तु आज का तथाकथित बुद्धिजीवी कोई दांयीं ओर चलता है तो कोई बाँयीं ओर, और बाकी बचे हुए किसी धर्म या जाति विशेष से खुद
आशुतोष शुक्ल
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सनद गुप्ता
ये सरकार सटक गई है....
अब आप ही बताएं क्या होगा इस देश का...मुझे समझ में नहीं आता कि आम आदमी के हक में फैसला लेने में सरकार को दिक्कत क्या है...आज सरकार ने साफ कहा कि अन्ना अनशन करते हैं तो करते रहें...किरण बेदी ने कहा कि कल सरकार हमारी बातें सुन रही थी लेकिन आज की मीटिंग में सरकार हमें डांट रही थी...अन्ना चाहते हैं कि हर विभाग सिटिजन चार्टर बनाए...सरकारी दफ्तरों में किसी काम को करने के दिन तय हों...यानि अगर आप जाति प्रमाण पत्र बनवाने जाते हैं तो इसमें कितने दिन का वक्त लगेगा...अगर तय मियाद के अंदर काम नहीं होता है तो जिम्मेदार अफ़सर की तन्ख़्वाह कटे...अब ये समझ नहीं आता कि आखिर आम आदमी जो रोज़-रोज़ अफ़सरशाही की चक्की में पिसता है उसे मुक्त करने में सरकार को क्या दिक्कत है...बड़ी शर्मनाक बात है कि सरकार आम आदमी की दुश्मन की तरह बरताव कर रही है..........