शनिवार, 23 मई 2009

तेरा दिन मेरी रात


जब तुम नींद की आगोश में चली जाती हो

तुम्हें मीठे सपने आते होंगे।

तब मेरे दिन की शुरुआत होती है

जिसे तुम नास्ता कहती हो

वह मेरे लिए डिनर है

कितना बदल गया है सब कुछ

शायद में रात्रिचर हो गया हूँ।

सूरज का उगाना या अस्त होना

मैंने महीनों से नही देखा है।

सोचता हूँ कभी देखूं कि अब सूरज का रंग क्या हो गया है

मेरे जैसे है या मेरा साथ छोड़ दिया है।

काश कभी समय मिले.

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