शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

कांग्रेस आरएसएस की तुलना सिमी से क्यों कर रही है


अयोध्या-बाबरी मस्जिद मामले का फैसला आए अभी 20 दिन भी नहीं हुए कि कांग्रेस ने आरएसएस की तुलना सिमी से करना शुरु दिया है। इसे देष का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इतने नाजुक मामले पर भी हमारे राजनेता अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने से बाज नहीं आ रहें हैं। आज का भारत 1992 से 2010 तक अर्थात् 18 वर्षों में एक शताब्दी की दूरी तय लिया है मगर हमारे नेता आज भी धर्म, जाति, पंथ आदि का ही सहारा लेकर चुनाव लड़ना और जीतना चाहते हैं।
30 सितंबर का आए फैसले से पहले यह कयास लगाया जा रहा था कि देष एक बार फिर 1992 की स्थिति में चला जाएगा। अर्थात् धार्मिक हिंसा हो सकती है। इसके मद्देनजर सभी स्थलों पर सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता कर दी गई थी साथ ही लोगों ने भी समझदारी का परिचय दिया और पूरे देष में कहीं भी एक भी अप्रिय घटना नहीं घटी। हमारे देष के कुछ नेताओं को यह बात रास नहीं आ रही है तो अब वे इस पर बयान बाजी करना शुरु कर दिए हैं। आरएसएस जो आजादी के पहले से ही अस्तित्व में है उसकी तुलना किसी ऐसे गुट से की जाए जिसकी छवि आतंकवाद रही हो तथा जिस पर प्रतिबंध लगा हो, देष के लोगों की भावनाओं को भड़काने जैसा है। एक-एक कर कांग्रेस के नेता विभाजन की राजनीति शुरु कर दिए हैं। कभी केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम आतंक का रंग निर्धारित करने लगते हैं तो उन्हें उसका रंग भगवा ही दिखाई देता है। भगवा हिंदुआंे का एक पोषाक होता है। आतंक का रंग भगवा बता कर देष के हिंदुओं को भड़काने का जो काम गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने किया उसे कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने आगे बढ़ाया और आरएसएस की तुलना सिमी जैसे प्रतिबंधित संगठन से कर डाली। राहुल गांधी को बहुत पहले एक बार किसी ने सलाह दी थी कि अगर भारतीय राजनीति में रहना है तो पहले अपने पिता के सभी विडियो को देख लें लेकिन शायद राहुल को इतना समय नहीं है। वह कांग्रेस के एक उभरते हुए चेहरे हैं और उनकी छवि बहुत ही साफ है तो उनको इस प्रकार का कोई भी बयान नहीं देना चाहिए जिससे वरुण गांधी और राहुल गांधी में कोई फर्क न रह जाए। वरुण गांधी को आज सभी जानते हैं लेकिन उनकी छवि सकारात्मक कम नकारात्मक ज्यादा है। लेकिन राहुल गांधी की छवि नकारात्मक तो नहीं ही हैं। इधर केंद्र से यह ज्वर निकलकर अब राज्यों तक भी पहुंच रहा है। दिग्विजय सिंह ने भी लगे हाथ तुलना कर डाली।
जिस प्रकार से घटना क्रम परिवर्तित हो रहा है उससे यही लगता है कि इस बार किसी भी दल को अयोध्या-बाबरी विवाद ने कुछ नहीं दिया तो सभी दल अपने अपने अनुसार बयानबाजी कर के ही कुछ प्राप्त करना चाहते हैं। लेकिन अब देष की जनता इतनी बुद्धु नहीं है।


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