शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2008

जो सभी को चाहता है।

अपनी बाँहों में भरने के लिए
उतावला खड़ा है
अपनी बाँहों को फैलाये
स्वागतम कह रह है
तुम उससे प्यार करो या न करो
पर
वह तुम्हारा सच्चा प्रेमी है
आज नही तो कल
वह तुमसे जरूर मिलेगा
पर
कोई निश्चित स्थान नही
तुमसे मिलने के लिए
तुम्हारे घर भी आ जाएगा
बिना पते का ही
रास्ते में भी मिल सकता है
फिर
प्यार से उठा कर साथ ले जाएगा
अपने घर को
और तेरा आदर-सत्कार
वह खूब करेगा।

मंगलवार, 1 जनवरी 2008

उत्साहित मन से तुम्हें पुकार लू


सभी मस्त है तुम्हे चूम लू


आ आज पूरे दिल से


तुमसे मुहब्बत कर लू


तू दूर जा रही है


तेरा आज मैं स्वागत कर लू


कल सभी नये सूर्य का स्वागत करेगें


सभी हैप्पी न्यू इअर कहेगें और


तुझे भुलाना चाहेगें


इसलिए


ओ दूर जाने वाले


तेरे लिए दो बूंद आसू गिरा लू


इस जिन्दगी में तू अब मिलेगा नही


बस एक याद ही छोड़ जाएगा


एक बार फिर तेरे गले लग लूँ


आ आज मैं तेरा स्वागत कर लूं।

गुरुवार, 27 दिसंबर 2007

नया साल

बेटा तुम भी एक प्रतिज्ञा कर लो
नया साल है कुछ नया कर लो।
इन शब्दों को सुन रहा हूँ मैं
आज से दस साल से
सभी माता-पिता यही कहा करते है
मैं यही सोच रहा था
कि .....................
मेरे एक दोस्त ने आवाज लगा दी
चल यार मैच खेल कर आते है
में आव देखा न ताव चला गया मैच खेलने
लौटा तो सोचा कि शाम से मिशन पर काम करुगा
लेकिन .........................
ता उम्र बीता दिया इसी सोच में
बस कल बस कल
करके ....

गुरुवार, 22 नवंबर 2007

एक ही वतन

कौन है इस जग में
जो दुखी न हो
पर अमूर्त चीज़ से भी जो दुखी हो
सच में वह महान है
दुनिया में हर रोज़ सब
इधर- उधर भागते रहते हैं
अपनी शांति के लिए
नही किसी और के लिए
तो ...............

मंगलवार, 20 नवंबर 2007

कौन-2

कौन है वह जो
सपनों में मेरे आती है।
प्यार, दुलार, स्नेह सारा
मुझ पर लुटा जाती है ।
बडे नाज़ से पालती है
अपना खून भी पिलाती है
बस एक ही तमन्ना दिल में रहती है
तुम सुखी रहो, फूलों-फलों
कौन है
चाहें जितना दुःख आये
कभी नही तुमको बतलाती
प्यार बराबर करती
हर मुश्किल से लड़ जाती
माँ है वह




सही समझा
फिर भी अपना धर्म तुम निभाते क्यों नही

बुढे माँ-बाप को घर में रखते क्यों नही

तेरे खुशियों के खातिर
दुःख का प्याला भी वह पीती है

तू
विकसित नही, कुत्सित है
अब तो अपना सुधार कर।।।

रविवार, 18 नवंबर 2007

कौन -1

जिसे खोजते हम मंदिर में
ढ़पली राग सजा करके
पत्थर की मूरत के आगे
हाय-हाय हम करते हैं
किसे खोजते?
खुदा
, राम, अल्लाह
कहाँ रहता हैं वह
चाहरदीवारी के अन्दर
शायद नही पंछी को ऊड़ना सुहाता है
पिजडा़ नही उसे भाता है
भगवान कैद नही रह सकता है

सर्वत्र दिखाई पड़ता है
मिलना चाहते हो उससे ?
हाँ ! पर कहाँ मिलेगा?
वहाँ तुम्हें सब देव मिलेगें
युध -आयुध के संग
जहाँ किसान मिट्टी खोदता












भूमि को हरी-भरी बनाता
जहाँ मजदूर पसीना बहा करके
सारेदेश को जग-मग करता
जाओगे वहाँ ?
नही ।
पर क्यों?
मैं पूजा करता हूँ उसकी
उससे प्रेम भी करता हूँ
पर नंगों के बीच में जाना
इसे सोच नही मैं सकता हूँ।

गुरुवार, 1 नवंबर 2007