गुरुवार, 22 अप्रैल 2010
केवल कागजों पर महिलाएं हुई ताकतवर
यह हाल केवल बलात्कार पीडिता राहत एवं पुनर्वास परियोजना का ही नहीं है। समिति ने कहा है कि महिलाओं से जुडी अन्य परियोजनों को भी नियमित रूप से धन आवंटित हो रहे है लेकिन उन्हें अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। इनमें राजीव गाँधी किशोरवय बालिका सशक्तिकरण परियोजना, बलात्कार पीडिता राहत एवं पुनर्वास परियोजना, स्वयं सिद्धा परियोजना चरण-२, इंदिरा गाँधी मातृत्व सहयोग परियोजना और राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण मिशन प्रमुख रूप से शामिल हैं।
राजीव गाँधी किशोरवय बालिका सशक्तिकरण परियोजन का बजटीय अनुमान १११ करोड़ रुपये निर्धारित किया ग्यालेकिन अभी तक मंजूरी के इंतजार में मंत्रिमंडल कि अलमारी में पड़ी है। बलात्कार पीडिता राहत एवं पुनर्वास परियोजना के लिए ५९ करोड़ और स्वयं सिद्धा परियोजना चरण-२ के लिए २० करोड़ रुपये का बजटीय अनुमान है लेकिन दोनों परियोजनाएं अभी तक गठन कि प्रक्रिया से ही गुजर रही हैं।
ऊचें-ऊचें दावे करने वाली हमारी संसद कि पोल तभी खुलती है संसद में कोई रपट प्रस्तुत कि जाती है। महिला आरक्षण को लेकर या उनकी शक्ति में इजाफा करने के लिए सभी दलों के नेता एक साथ एक दुसरें का हाथ पकड़कर फोटो खिचवा लेते अहिं लेकिन लम्बे अरसे तक उन परियोजनाओं को अमली जामा नहीं पहनते हैं। मीडिया में बने रहने एवं वोट बैंक के लिए हर साल बहस होती अहि है सब हो जाते हैं लेकिन अंतिम मंजूरी नहीं-दी जाती है इनके कामों। लिए सरकारी टूर
मुद्दों पर har sal bahas hoti hai। sb सहमत भी हो जाते हैं। लेकिन अंतिम मंजूरी नहीं दी जाती है। इन कामों के लिए sarkari tour पर एक समिति का गठन क्र दिया जाता है। यह समिति समय-समय पर अपनी चिंता व्यक्त करती रहती है। चिंता व्यक्त करने के आलावा यह समिति और क्र ही क्या सकती है। महिलाओं कि स्थिति को लेकर गठित समिति ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए आवंटित धन का पूरी तरह उपयोग नहीं होने पर सख्त नाराजगी जताई है। समिति ने अपनी रपट में कहा है कि भौगोलिक और जलवायु सम्बंधित कठिनाइयों का सामना करने वाले इस क्षेत्र के लोगों की भलाई के लिए धन का उचित उपयोग किया जाना जरुरी है। सरकार लोगों को कब तक धोखा देती रहेगी और लोग कब तक धोखा खाते रहेंगे यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लालफीताशाही के चंगुल में फंसी परियोजनेयं कब मंजूर होंगी और वास्तविक रूप से महिलाएं कब सशक्त होंगी ईसका अभी इंतजार करना होगा।
शनिवार, 19 सितंबर 2009
सवाल-जबाब
मंगलवार, 15 सितंबर 2009
विरासत पर सियासत
सवाल यह उठता है कि इतिहास को इस प्रकार से मिटाया जाना कहां तक उचित है। इतिहास को मिटाना आसान है लेकिन बनाना ने केवल मुश्किल बल्कि असंभव है। अच्छा हो सरकार ऐतिहासिक इमारतों की रक्षा करे और उन्हें नया रुप और कलेवर दे।
मंगलवार, 8 सितंबर 2009
रियालिटी शो का रियल
वर्तमान समय में इलेक्ट्रानिक मीडिया खासकर टेलीविजन पर रियालिटी शोज की भरमार है। लेकिन इसमें भाग लेने वाले उम्मीदवार अपने को एक सहज स्थिति में नहीं पाते हैं। ‘वार परिवार’ रियालिटी शो की एकता नाम की पार्टीसिपेंट ने कहा भी कि- अगर शो में टार्चर होके, डामिनेट होके करना है तो देयर इज नो प्वांइट आँफ डूइंग इट। रियालिटी शो में तो स्थिति यह आ गई है कि कहीं नस्लभेदी टिप्पणी की जाती है तो कहींपार्टिसिपेंट आपस में हाथापाई पर भी उतर आते हैं। 9एक्स पर एक रियालिटी शो शुरु हुआ- ‘वाॅलीबुड का टिकट’। इस रियालिटी शो के पार्टीसिपेंट में टेलीविजन कलाकार चेतन हंस राज जो कि बतौर पार्टीसिपंेट आए और एक नव आगन्तुक और पुनीत के बीच हाथापाई हो गई। रियालिटी शो में यह पहली घटना नहीं थी कि इस तरह की हाथापाई हुई। बाल अधिकारों को लेकर मीडिया में बहुत चर्चा हुई है। एक अनुमान के मुताबिक सबसे ज्यादा बाल अधिकारों का हनन रियालिटी शोज में होता है। जजों के द्वारा बच्चों को मानसिक रुप से इस कदर प्रताड़ित किया जाता है कि वे जीव भर के लिए विक्षिप्त हो जाते हैं। बांग्ला चैलन के एक रियालिटी शो में षिंजिनी से गुप्ता के साथ जजों ने इतने बुरे तरीके से बर्ताव किया कि वो लड़की दिमागी तौर पर बीमार पड़ गई। अब स्थित यह है कि वो लड़की न बोल सकती है न ही सोच सकती है। रियालिटी शोज में जज अब अति पर उतर आए हैं। बच्चों को लेकर तारीफ और बुराई का पुल बांधते हैं ये जज। अगर कोई अच्छा कर रहा है तो आसमान पर चढ़ देते हैं और उसी तरह जमीन पर भी गिरा देते हैं। सुधाीष पचैरी कहते हैं कि पुराने जमाने के बेरोजगार हो चले सितारे अब जज बनकर बैठ जाते हैं। रियालिटी शो में आने के लिए वे मानक निर्धारित करते हैं। ये जज उस मानक को अपने जमाने के अनुसार तय करते हैं। अतः इसमें स्वाभाविकता का होना संभव नहीं प्रतीत होता है।
रियालिटी शो किचड़ उछालने का शो बनता जा रहा है। एक प्रतिभागी दूसरे पर जितना किचड़ उछाले वह उतना ही रियल है। रियालिटी शो प्रतिभा को आगे लाने का नहीं दुष्मनी बढ़ाने का शो बनते जा रहे हैं। हालात ये है कि चैनल एक पार्टीसिपेंट को दूसरे के खिलाफ, एक घराने को दूसरे घराने के खिलाफ, एक मेंटर को दूसरे मेंटर के खिलाफ, यहां तक की एक राज्य का दूसरे राज्य के खिलाफ इस कदर खड़ा करते हैं कि मानों वे दोनों आपस में म्यूजिकल प्रोग्राम को टक्कर नहीं दे रहे हैं, वर्षों पुरानी दुष्मनी निकाल रहे हैं।