मंगलवार, 20 नवंबर 2007

कौन-2

कौन है वह जो
सपनों में मेरे आती है।
प्यार, दुलार, स्नेह सारा
मुझ पर लुटा जाती है ।
बडे नाज़ से पालती है
अपना खून भी पिलाती है
बस एक ही तमन्ना दिल में रहती है
तुम सुखी रहो, फूलों-फलों
कौन है
चाहें जितना दुःख आये
कभी नही तुमको बतलाती
प्यार बराबर करती
हर मुश्किल से लड़ जाती
माँ है वह




सही समझा
फिर भी अपना धर्म तुम निभाते क्यों नही

बुढे माँ-बाप को घर में रखते क्यों नही

तेरे खुशियों के खातिर
दुःख का प्याला भी वह पीती है

तू
विकसित नही, कुत्सित है
अब तो अपना सुधार कर।।।

रविवार, 18 नवंबर 2007

कौन -1

जिसे खोजते हम मंदिर में
ढ़पली राग सजा करके
पत्थर की मूरत के आगे
हाय-हाय हम करते हैं
किसे खोजते?
खुदा
, राम, अल्लाह
कहाँ रहता हैं वह
चाहरदीवारी के अन्दर
शायद नही पंछी को ऊड़ना सुहाता है
पिजडा़ नही उसे भाता है
भगवान कैद नही रह सकता है

सर्वत्र दिखाई पड़ता है
मिलना चाहते हो उससे ?
हाँ ! पर कहाँ मिलेगा?
वहाँ तुम्हें सब देव मिलेगें
युध -आयुध के संग
जहाँ किसान मिट्टी खोदता












भूमि को हरी-भरी बनाता
जहाँ मजदूर पसीना बहा करके
सारेदेश को जग-मग करता
जाओगे वहाँ ?
नही ।
पर क्यों?
मैं पूजा करता हूँ उसकी
उससे प्रेम भी करता हूँ
पर नंगों के बीच में जाना
इसे सोच नही मैं सकता हूँ।

गुरुवार, 1 नवंबर 2007

बुधवार, 17 अक्तूबर 2007

स्वतंत्रता नाम की

आज के नागरिकों, तुम पूछो अपने से
क्या है तुम्हे स्वतंत्रता
सोचो
आज हम स्वतंत्र हैं जरुर
लेकिन
क्या हकीकत यही है स्वतंत्रता
जहां हमें रहने के लिए, खाने के लिए
पीने के लिए पानी नही है
कहीँ यही तो हमारे परतंत्रता की कहानी नही है
गुलाम कैसे हुए इसे भी सुनों
भारत विभाजित था अनेक खण्डों में
राजा लड़ते थे राजाओं से
देश की किसी को सोच नही थी
अपनी सल्तनत तक की देशभक्ति थी
समय में परिवर्तन आया
अंग्रेज भारत में आए
राजाओं को बंदी नही बनाया
उन्हें पेंशन की लालच दीं थी
हकीकत में देखें तो भारत आज वैसे ही है
जैसा बहुत पहले था
आज राजा नही नेता लड़ रहें है
कुर्सी के लिए देश के लिए नही
भारत जहाँ तक पीने का पानी नही पहुचा पाया
वहां आज सॉफ्ट ड्रिंक की बोतलें हैं
यह क्या है
शाम हो रही है सूरज ढ़ल रहा है
बह्रत की असुरक्षा का असार छा रहा है
वतन के नागरिकों वतन को बचा लो
भारत माता है असहाय है
उसकी लाज बचा लो

शनिवार, 13 अक्तूबर 2007

किताबों में बीता बचपन

कैसा यह बचपन है,
न खेलने की आजादी है, न घूमने की।
अपना भार लिए ढ़ोता रहूँ,
यही अब मेरा बचपन है।
जितना मेरा भार नही
उतनी भारी हैं पुस्तक
ऊपर से मैड़म की डॉट पडे
तो
आजादी कैसी है।
मैं चाह कर के भी
नही घूम सकता हूँ
हमारे ऊपर बॉस बने अध्यापक
प्रतिदिन का काम बताते
अंग्रेजी पढ़ना, हिंदी पढ़ना
कंप्यूटर की शिक्षा लेना
दिन आते रहे, जाते रहे
पता नही कब बीत गया बचपन
अब तो जीं मेरा घुटता जाता है
पुस्तकों को देख कर
कहीँ से थोडा मुझे राहत मिल जाये
तो
स्वर्ग का आनंद मैं महसूस कर लेता
अपने दिलों दिमाग में स्फूर्ति भर लेता।

सोमवार, 8 अक्तूबर 2007

गाँव- आदमी

फटे-पुराने कपड़ों में
करते हैं वो काम
मेहनत ही है उनका ईमान
खेती ही उनका साधन
सौंदर्य प्रसाधन का नाम न जाने
पर मिट्टी को ही माँ माने
उसी से शरीर को रंगना
ही अपना सौंदर्य वो माने

शिकवा भी उसी से,शिक़ायत भी उसी से
प्यार उसी से घृणा भी उसी से
दोस्त वही दुश्मन भी वही
वह कौन?
भगवान
सम्मान-मान सब ही उसका
कर्म को ही भाग्य वो माने
निष्ठुर नायक वह है जो
उनकी भी न प्रार्थना सुने
गाँव किसानों का है
आत्मा भारत की है गाँव
वो हमारे आत्मा हुए तो
वही हमारे पूज्य हुए।

अन्तरजातीय विवाह का सच

विश्व मे हो रहे संघर्ष तथा लड़ाइयों को अगर बारीकी से देखा जाय तो उसका मूल दो जातियों अथवा धर्मों के मध्य ही है। चाहे सिया-सुन्नी समुदाय हो या कोई और समुदाय उनके मध्य लडाई का कारण उनका धर्म ही है। धर्म और जाति व्यवस्था समाज में अपना पैर बहुत मजबूती के साथ जमे चूका है। ऐसे में हो रही इस विडम्बना को कि इसे धार्मिक गुरू या सरकार संचालित कर रही है, यह उचित नही है ।
एक ओर तो विकास के मार्ग पर बढते हुआ नित्य-प्रति ऊची-ऊची मंजिलों को छू रही है। परंतु इसके मूल मे जाति-प्रथा भी अपना प्रभाव बड़ा रही है। अधिक आरक्षण की मांग, आरक्षण के अन्दर आरक्षण आदि अनेक ऐसे कारक हैं जो सरकार की नीतियों में कहीँ न कहीँ कोढ़ को प्रदर्शित कर रही हैं। यदि भारत की सरकार इसे मिटाना चाहती है तो आरक्षण को पहले सा करना होगा
जाति धर्म समाप्त को धीरे-धीरे समाप्त करने में अंतर्जातीय विवाह काफी हद तक सफल हो सकती है। परन्तु इस देश में ये व्यव्स्थाएं इतनी मजबूत हैं कि आम आदमी को अंतर्जातीय विवाह करने की बात को सोचना ही मुश्किल है आज के समाज में ऐसा प्रतीत होता है कि क्रीमीलेयर के लिएअंतर्जातीय विवाह चाहे आधिकार है।"रंगीन दुनिया" मे रहने वाले लोग चाहे जिस जाति, धर्म या संप्रदाय के लोगों से शादी कर लें उन्हें इसकी छूट है। परन्तु इसी देश मे अगर कोई भी अन्य व्यक्ति इस प्रकार
की ग्क्स्ताखी करता है तो उसे इसाकी भारी-भरकम कीमत चुकानी पड़ती है। कभी-कभी तो वह समाज की जनता की क्रूरुता का शिकार होकर अपने जीवन कसा ही अंत कर लेते हैं। समाज में ऐसा कौन सा रोग है जो निम्नवर्ग या मध्यमवर्ग के लिए अभिशाप का कर्ण बन जाता है।
अभी हाल ही में प्रकाशित एक खबर के अनुसार जलन्धर में प्रेम-बिवाह करने की सजा यह मिली की उस नव दाम्पत्य को अपने आबरू अर्थात इज्जत मन -मर्यादा को तक पर रख कर मुह में काले रंग को लगा कर घुमाया गया। यह कौन सा समाज है जो प्रतिष्ठितों के लिए तो वरदान परन्तु माध्यम वर्ग के लिए अभिशाप है। इसी प्रकार की वारदातें प्रायः प्रकाश में आती रहती हैं। इससे केवल यही प्रतीत होता है कि आज भी मानव समाज ऊच-नीच के बंधनों में जकडा हुआ हैं।
भारत जैसे विकासशील देश में इस प्रकार के कार्य इसके विकास में रोड़ा बनने का कम कर रही हैं। राजनीतिक दल को जाति को वोट बैंक के रुप में देखती हैं और उन्हें आरक्षण देने की बात करती हैं। इस प्रकार जाति व्यवस्था को बढाने में राजनीतिक दल बहुत ही अधिक महत्व पूर्ण भूमिका निभा रहें हैं। हाल ही में राजस्थान में हुई घटना के पीछे जाति का ही मामला रहा है। आख़िर कब तक जाति व्यवस्था भारत में अपना प्रभुत्व बनाए रखने में सक्षम रहेगी। क्या इसे समाप्त करने का कोई रास्ता नही है। ऐसा तो नही कि किसी समस्या का समाधान न हो। जाति व्यवस्था को समाप्त करने का एक बहुत ही कारगर कदम होगा कि अंतरजातीय बिवाह को प्रोत्साहन मिले।
धीरे- धीरे ही सही प्रेम-बिवाह का जो रुप समाज स्वीकार करने से मुकर रह है,उसे स्वीकार करना ही पड़ेगा।अधिकतर प्रेम बिवाह अंतरजातीय होते हैं। अंतरजातीय बिवाह का फायदा यह होता हैं कि उनके बच्चे किसी एक जाति के नही होकर दो जातियों के होते हैं। इससे जाति के निर्धारण में भी कठिनाई आ जायेगी। अतः जाति को समाप्त करने में अंतरजातीय बिवाह को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिऐ।