गुरुवार, 22 नवंबर 2007

एक ही वतन

कौन है इस जग में
जो दुखी न हो
पर अमूर्त चीज़ से भी जो दुखी हो
सच में वह महान है
दुनिया में हर रोज़ सब
इधर- उधर भागते रहते हैं
अपनी शांति के लिए
नही किसी और के लिए
तो ...............

मंगलवार, 20 नवंबर 2007

कौन-2

कौन है वह जो
सपनों में मेरे आती है।
प्यार, दुलार, स्नेह सारा
मुझ पर लुटा जाती है ।
बडे नाज़ से पालती है
अपना खून भी पिलाती है
बस एक ही तमन्ना दिल में रहती है
तुम सुखी रहो, फूलों-फलों
कौन है
चाहें जितना दुःख आये
कभी नही तुमको बतलाती
प्यार बराबर करती
हर मुश्किल से लड़ जाती
माँ है वह




सही समझा
फिर भी अपना धर्म तुम निभाते क्यों नही

बुढे माँ-बाप को घर में रखते क्यों नही

तेरे खुशियों के खातिर
दुःख का प्याला भी वह पीती है

तू
विकसित नही, कुत्सित है
अब तो अपना सुधार कर।।।

रविवार, 18 नवंबर 2007

कौन -1

जिसे खोजते हम मंदिर में
ढ़पली राग सजा करके
पत्थर की मूरत के आगे
हाय-हाय हम करते हैं
किसे खोजते?
खुदा
, राम, अल्लाह
कहाँ रहता हैं वह
चाहरदीवारी के अन्दर
शायद नही पंछी को ऊड़ना सुहाता है
पिजडा़ नही उसे भाता है
भगवान कैद नही रह सकता है

सर्वत्र दिखाई पड़ता है
मिलना चाहते हो उससे ?
हाँ ! पर कहाँ मिलेगा?
वहाँ तुम्हें सब देव मिलेगें
युध -आयुध के संग
जहाँ किसान मिट्टी खोदता












भूमि को हरी-भरी बनाता
जहाँ मजदूर पसीना बहा करके
सारेदेश को जग-मग करता
जाओगे वहाँ ?
नही ।
पर क्यों?
मैं पूजा करता हूँ उसकी
उससे प्रेम भी करता हूँ
पर नंगों के बीच में जाना
इसे सोच नही मैं सकता हूँ।

गुरुवार, 1 नवंबर 2007

बुधवार, 17 अक्तूबर 2007

स्वतंत्रता नाम की

आज के नागरिकों, तुम पूछो अपने से
क्या है तुम्हे स्वतंत्रता
सोचो
आज हम स्वतंत्र हैं जरुर
लेकिन
क्या हकीकत यही है स्वतंत्रता
जहां हमें रहने के लिए, खाने के लिए
पीने के लिए पानी नही है
कहीँ यही तो हमारे परतंत्रता की कहानी नही है
गुलाम कैसे हुए इसे भी सुनों
भारत विभाजित था अनेक खण्डों में
राजा लड़ते थे राजाओं से
देश की किसी को सोच नही थी
अपनी सल्तनत तक की देशभक्ति थी
समय में परिवर्तन आया
अंग्रेज भारत में आए
राजाओं को बंदी नही बनाया
उन्हें पेंशन की लालच दीं थी
हकीकत में देखें तो भारत आज वैसे ही है
जैसा बहुत पहले था
आज राजा नही नेता लड़ रहें है
कुर्सी के लिए देश के लिए नही
भारत जहाँ तक पीने का पानी नही पहुचा पाया
वहां आज सॉफ्ट ड्रिंक की बोतलें हैं
यह क्या है
शाम हो रही है सूरज ढ़ल रहा है
बह्रत की असुरक्षा का असार छा रहा है
वतन के नागरिकों वतन को बचा लो
भारत माता है असहाय है
उसकी लाज बचा लो

शनिवार, 13 अक्तूबर 2007

किताबों में बीता बचपन

कैसा यह बचपन है,
न खेलने की आजादी है, न घूमने की।
अपना भार लिए ढ़ोता रहूँ,
यही अब मेरा बचपन है।
जितना मेरा भार नही
उतनी भारी हैं पुस्तक
ऊपर से मैड़म की डॉट पडे
तो
आजादी कैसी है।
मैं चाह कर के भी
नही घूम सकता हूँ
हमारे ऊपर बॉस बने अध्यापक
प्रतिदिन का काम बताते
अंग्रेजी पढ़ना, हिंदी पढ़ना
कंप्यूटर की शिक्षा लेना
दिन आते रहे, जाते रहे
पता नही कब बीत गया बचपन
अब तो जीं मेरा घुटता जाता है
पुस्तकों को देख कर
कहीँ से थोडा मुझे राहत मिल जाये
तो
स्वर्ग का आनंद मैं महसूस कर लेता
अपने दिलों दिमाग में स्फूर्ति भर लेता।

सोमवार, 8 अक्तूबर 2007

गाँव- आदमी

फटे-पुराने कपड़ों में
करते हैं वो काम
मेहनत ही है उनका ईमान
खेती ही उनका साधन
सौंदर्य प्रसाधन का नाम न जाने
पर मिट्टी को ही माँ माने
उसी से शरीर को रंगना
ही अपना सौंदर्य वो माने

शिकवा भी उसी से,शिक़ायत भी उसी से
प्यार उसी से घृणा भी उसी से
दोस्त वही दुश्मन भी वही
वह कौन?
भगवान
सम्मान-मान सब ही उसका
कर्म को ही भाग्य वो माने
निष्ठुर नायक वह है जो
उनकी भी न प्रार्थना सुने
गाँव किसानों का है
आत्मा भारत की है गाँव
वो हमारे आत्मा हुए तो
वही हमारे पूज्य हुए।