गुरुवार, 4 सितंबर 2008

गुरु

अंकित कर मेरे अवगुण तुम
दिए प्रकाश विवेक स्वरूप
मैं अनजान रहा रवि की किरणों से
वह किरण आप ने दिखलाई
पढ़ा करके पाठ ज्ञान शील एकता
हम सबमें एक नई ज्योति जगाई
अन्धकार मय मोहित जग में
मै फसता ही जाता था
पाकर के स्नेह आप का
मैंने कुछ किरणें हैं देखा
बस यही कमाना है मेरी -२
यह रूप हमेशा बना रहे
हम जैसे नव आगंतुक को
एक छाया हमेशा मिलाती रहे।

ऐसे भी हैं लोग

हाय! कितने दिन बीत गये
बिना भोजन किए
चारों तरफ़ पानी है, पर
बिना पानी के।
मै छत पर खड़ा रहा
कई दिनों तक
इस उम्मीद में की
इन्द्र थोड़ा दया कर दें
एक के ऊपर एक सामान रखता गया
लेकिन अब हाय! कैसे बचूं ........... ।

सोमवार, 19 मई 2008

क्योंकि जिन्दगी इसी का नाम है.

जीतना ही जिन्दगी का नाम नही होता है,
हार कर भी खुश रहना हमारा काम होता है।
दूसरों को छल कर बहुत धनवान होते हैं
खुशी का इक लफ्ज भी उन्हें दुश्वार होता है।
हार गए यदि सारे दांव, छल गया तुमको संसार
खुश होकर अब रहना सीखो,
डरने से अब क्या काम
देखे बहुत है जहाँ में इन्साँ को
सभी तन्हा, सभी उदास नजर आते हैं।
बहुत है जो इक बाजी हारने के बाद हार मै लेते हैं।
दूसरे इसे जितने को उत्सुक नजर आते हैं।
उनके लिए हारना और जीतना ही जिन्दगी है
क्योंकि यही हार और जीत ही जिन्दगी का नाम है।

महगाई

कहो जी, क्या हल है।
घर में तो सभी खुशहाल हैं।
फ़िर भी तोरी की तरह क्यों खस्ता हाल है।
पगार बढने को सुनकर तो चेहरा बड़ा लवलीन था
फ़िर क्यों आज यह सुखाया फूल है।
किसान कहते हैं, मजदुर कहते हैं,
या यूं कहे कि सभी कहते हैं
जो अपना व्यवसाय करते हैं।
सरकार तुम्हारी पगार बढाये
हम अपनी बढा लेगे
फ़िर महगाई का रोना क्या रोना
चाहते क्या हो धनवान होना न
सो तो हो गए
अब पैसा क्या करोगे रखकर
अरे भाई! महगाई है उसे खर्च देना
जैसे थे वैसे ही रहोगे।

वह मुझसे बहुत प्यार करती है

आयु कोई दो साल होगी। लगाव इतना कि पूछिये मत। बात किसी और कि नही मेरे घर के बगल में रहने वाली लडकी मुस्कान। जिसे हम सभी प्यार से मुक्कू कहते हैं। जब उसका जन्म हुआ तब तक मुझे इस शहर में आये मुश्किल ले दो महीने हुए थे।

सभी का प्यार करने का अंदाज अलग-अलग होता है। मैं उसे जितना मारता हूँ उतना ही प्यार भी करता हूँ। वह मार खाने के बावजूद मेरे पास ही रहती है। लेकिन खाने की कोई वस्तु किसी को नही देती है। मुझे भी। उस दिन पता नही उसके दिमाग में क्या बात आई कि वह सेब का एक टुकडा लेकर मेरे घर आ गई। उस समय मेरी माँ भी मेरे पास आई हुई थी। उसने सेब को लेकर आते ही मेरी माँ से कहा" उमेथ भइया " मैं किसी काम से बाहर गया हुआ था । माँ ने कहा दिया वह बाहर गए हैं क्यों?

वह इसे समझ तो नही सकी पर खड़ी रही। मेरे पिता जी भी घर पर ही थे। माँ ने कहा "मुक्कू इसे मुझे दे दो" फ़िर उसने कहा" नही भइया " उसे इतना विश्वास दिलाने की कोशिश की गयी कि मैं तुम्हारे भइया को दे दूंगी। परन्तु वह नही मानी। अंत में माँ ने कहा अच्छा रख दो जब भइया आयेंगे तो खा लेगें। वह ख़ुद बेड पर चढकर एक आलमारी पर रख देती है । लेकिन मेरे माता-पिता को नही देती है। उसे इस बात का विश्वास ही नही था कि ये उन्हें दे देगें। उसे वह मुझे देना चाहती थी, मगर क्या करे। बाद में उसने मुझसे कुछ कहा तो नही परन्तु उसका चेहरा देखकर मैं समझ गया कि वह मुझसे नाराज है। उसकी नाराजगी दूर करने का उपाय यही है ही कि उसे गोद में उठा लो। मैंने उसे उठा लिया और वह खुश हो गयी।

कृषक की दास्तान

कर्जों के तले दबे पहले से ही हैं भगवन
आप ने यह क्या शितम ढाया है
कोई मेरे दुःख का तो साथी नही था
आप पर ही तो हमें विश्वास था ।
छः महीने से -छः महीने से इंतजार था
घर में आनाज आएगा,
हमें भी एक दिन गम से निजात मिलेगा।
महीना चैत का और गेहूं खेत में पके हैं।
घर में एक दाना नही है
और यह
बेवक्त बारिस का कहर
क्यों ढाया है आपने
सच है
विपत्ति में आप भी हमारे नही हैं।
आप तो ऐसे नही थे
फ़िर क्यों किया यह विश्वासघात
हमें आपहिज क्यों बना दिया
इसीलिए कि हम बेबस हैं न ।

ये कैसा लोकतंत्र

आओ एक झुनझुना बजायें
आजादी का गीत गाकर
अपने मन को संतोष दिलाएं। आओ....... ।
सरकारें बदलती रही कुर्सी वही रही
जनता के उपर पुलिस भी मेहरबान रही।
कैप्टन हों या बादल दोनों नेता ही हैं।
पुलिस उनकी लाठी और जनता भैस है
अपना हक मांगना, और न मिलाने पर रोष करना
उनके लिए गलत बात है
नेता जी बोले चुनाव के समय -
महिला देश का आधार हैं,
लोकतंत्र में उनकी अलग पहचान है
सरकार हमारी होगी तो कष्ट दूर तुम्हारे होंगे
पर हाय
सरकार तो बन गई बादल की
और हमें झुनझुना दे दिया
कह दिया
बच्चों बजाना मना है।
अधिकार संविधान में है
पर
मांगना मना है।