गुरुवार, 4 अक्तूबर 2007

ज़िन्दगी

उठने,गिरने, फिर से चलने का नाम ही तो
ज़िन्दगी है।
जो सदा चले और चलती ही रहें वही तो
जिन्दगी है।
ठोकर खाए, रूक जाये, फिर चले वही तो
जिन्दगी है।

काश मैं भूल जाऊ


दिन का सारा कम अगर मैं
भूल जाऊ
रात को अच्छी नींद तो मैं
ले पाऊ
दुर्लभ जीवन कर देता है
कंप्यूटर का काम
ई-मेल बनाना, ब्लाग बनाना
काम पूरा करना है
शाम को पता चला
अभी तक का काम
सही नही है
फिर सोचा
सब कुछ भूल कर
एक नया परिचय बनाऊ
और उसी पर जीवन का
सारा भार डाल जाऊ
काश मैं यह कर सकता
तो जीवन ही बदल जाता
सूरज नया होता मेरे लिए
और मैं नया होता उसके लिए

बुधवार, 3 अक्तूबर 2007

दोस्त -मेरा

यार तू ही मेरा दोस्त है
जो कहता है वह करता नही,
जो करता है वह कहता नही
ग़ुस्सा आती है पर क्या करू
मेरी भाषा यहाँ तू ही समझता है
अब तो मुझे डर सा लगता है
तेरे साथ चलने में
तू चलता नही
और चलता है
तो
वादों, बातों, और भाषण पर
यह मुझे पसन्द नही
कर्म नही करता,
बातें बड़ी- बड़ी करता है
वादा करने में तो तू
नेता का भी गुरू निकला
उन्हें सिखाना वादे करना
और इसे और इसका काम करना
बस अब मेरे यार मुझे
थोड़ा तू आराम दें
वादें मत कर मुझसे॥

हे ! राम









हे
! राम
ये शब्द सुख के हैं या दु:ख के
यह तो पता नही
पर दो अक्तुबर को
दुनिया इसे सच का अंत मने
क्योंकी पिता जी नही रहे
चले गए अपने धाम को
महात्मा गाँधी केवल महात्मा थे
या फिर कुछ और
आज उनके आदर्शो को हम माने
उनकी जीवनशैली अपनाए
तो शायद दुनिया सुधर जायेगी॥

अपनी दिनचर्या बनाया

विकास के शिखर पर बैठे लोगों को देखकर
मेरे मन मे यह बात आई
कैसे उस शिखर पर पहुचू
जहां का मंजिल बहुत बड़ा है।
थोडा सोचा
चलो अपनी दिनचर्या बनाऊ
उस पर अमल करु
और आगे आऊ
बना डाली दिनचर्या
सुबह से शाम तक की
शाम से सुबह तक की
एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीता
फिर भूल गया यह सारी दिनचर्या
याद क्या रहता है
उठना, नहाना, खाना, पढना और
बाद में
सो जाना
जिंदगी बीत जाती है इसी में
सारे मानव जाति की अंत में बचत है जो
वह भी चिन्ता और सोच
के नाम चली जाती है
अंत में जाना ही है
यही मानव का जीवन है ॥





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कौन-मरा

आज मेरे सामने एक दुर्घटना घटी
साइकिल से मैं घर आ रहा था कि
कार ने एक आदमी को कुचल दिया
बेफ्रिक सभी दौडे चले जा रहे थे
सड़क के पर पड़ा था वह
तड़पता हुआ
अंत हो गया उसका
सुचना पुलिस को भी गई
वह आई तो देखा खेल ख़त्म है
तब्तीश के लिए लोगों से बयान मागें
तो सभी ने कह दिया
साहब ! हम अभी यहाँ आये
किसी ने कुछ नही कहा
वह मरा नही
न जिंदा है
मरी तेरे भीतर कि आत्मा है
तू देखता है पर सच नही कह सकता है
ये तेरी बेबसता है या कमजोरी है
मरे उसे देखने वाले हैं
जो देखते हुए भी कुछ बोल नही सकते हैं ॥