मंगलवार, 9 सितंबर 2008

ओलम्पिक में मिले पदक- भारत के लिए गर्व या शर्म

चीन में वर्ष २००८ के अगस्त में खेल महाकुम्भ ओलम्पिक का आयोजन किया गया । सुखद बात यह रही कि इस आयोजन में भारत को व्यक्तिगत स्पर्धा में एक स्वर्ण पदक तथा दो रजत पदक मिले। भारत के १०८ साल के ओलम्पिक इतिहास में पहली बार किसी को व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक नसीब हुआ है। प्रशन यह उठता है कि आख़िर अभी तक भारत में किसी को व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक प्राप्त क्यों नही हुआ?

जहाँ तक मेरा मानना है वह यह है कि इसके पीछे सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। वर्ष २००५-०६ में ४३८.९९ करोड़ रुपये का बजट खेल के लिए प्रस्तावित किया गया था। लेकिन ३८६.१० करोड़ ही स्वीकृत किया गया। यही हालत २००६-०७ की भी रही। इस साल ४५७.२० करोड़ ही दिया गया वह भी यह rashtra मंडल खेलों की तैयारी के लिए है। कहने को तो २००७-०८ में ७०० करोड़ का प्रावधान किया गया है जिसमें से २३७.५१ करोड़ राष्ट्र मंडल खेलों तैयारी के लिए है ।

भारत में राष्ट्रीय खेल का आयोजन हर दो साल पर किया jaanaa था। लेकिन ऐसा नही है। पिछले साल असम के गुवाहाटी में हुए ३३वे तथा हैदराबाद में हुआ३२वे राष्ट्रीय खेल में ५ साल का अन्तर था। इसी तरह ३० वें और ३१ वें राष्ट्रीय खेल में तीन साल तथा २८वेन और २७ वें राष्ट्रीय खेल में ७ साल का अन्तराल रहा । भारत में राष्ट्रीय खेल कभी पास हुआ है कभी फेल। ऐसी स्थिति में भारत के लिए यह पदक क्या हैभारत में खेल का आधार ही कमजोर है। वर्ष १९८४ में बने भारतीय खेल प्राधिकरण के तहत जिला स्तर की हर प्रतियोगिता के लिए ३० हजार तथा राज्य स्तर की हर एक प्रतियोगिता के लहै रुपयों का प्रावधान किया गया है ही ऊट के मुह में जीरे के सामान है। खेल प्रशिक्षकों की संख्या देखी जाए तो भारत में एक जिले के लिए केवल ३ प्रशिक्षक ही है । ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले अभिनव बिंद्रा तथा कांस्य पदक जीतने वाले सुशील और विजेंद्र ने यह स्पष्ट कर दिया की भारत में आज भी प्रतिभा की कमी नही है। कमी है तो उन्हें एक दिशा देने वालों की। भारत के किसी भी जिले में खेल prashikshakon की संख्या बहुत ही कम है।

ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले अभिनव विन्द्रा तथा कांस्य पदक जीतने वाले सुशील और विजेंदर कुमार ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत में भी प्रतिभा की कमी नही है, कमी है तो उन्हें एक दिशा देने वाले की। भारत के किसी भी जिले की यह हल नही है कि वहां की खेल संस्था ठीक ले काम कर सके। खिलाड़ियों को जीतने के बाद तो पैसों से तौल दिया जाता है परन्तु जब वह तैयारी कर रहे होते हैं तब उन्हें अर्थाभाव से गुजरना पड़ता है। बीजिंग ओलम्पिक की तैयारी कर रहे खिलाड़ियों को मात्र ७५००० रुपये प्रति खिलाड़ी मिले थे। वह भी पुरी तैयारी के लिए। ऐसी स्थिति में भारत के खेल की क्या दशा होगी इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। भारत यदि इग्लैंड में होने वाले ओलम्पिक में कुछ करना चाहता है तो उसे चीनी माडल अपनाना चाहिए। तथा खिलाड़ियों को सभी प्रकार की सुबिधा मुहैया करवाना चाहिए। जिससे पदक जीतने के बाद यह कोई न कहे कि इसके लिए मुझे इतने रुपये लगाने या खर्च करने पड़े।

2 टिप्‍पणियां:

  1. very interesting artical to read han. First time read ur blog. Good efforts keep it up. Regards

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  2. seema ji maine ek naya prayog karne ki koshish ki hai wh yh hai ki hm jan sake ki vartan men jo chal rha hai uske bare men apn ki kya ray hai . isliye maine voting shuru ki hai . aasha karta hun ki aap jarur vote karengi. Umesh kumar

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