कभी देखकर तुम्हें मन मयूर हो जाता है,
कभी तेरे रूप से मन मायूस हो जाता है।
जब महीना सावन भादौं का हो,
तब तेरा रूप सिलोन लगता है।
आने से तेरे घर-घर में
खुशियों की बारिस हो जाती है।
पर देखा तुम्हारा यही रूप मुझे क्रोध बहुत ही आता है।
महीना चैत वैशाख का हो खेतों में सोना पड़ा रहे।
तुम उसे अपनी छाया में लेकर
मिटटी में मिला देते हो।
धिक्कार है उस भगवान को, जिसने तुम्हे बनाया होगा।
तेरा प्यार हमें कम ही मिलता है पर दुख ज्यादा ही होता है।
पर सर्व्सत्ताशायी हो तुम, इतना अन्याय मत करो
कर जोड़ विनती है हम सब की कुछ हमारा भी ध्यान धरो।
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