बुधवार, 17 सितंबर 2008

हिन्दी दिवस

आख़िर हम हिन्दी दिवस क्यों मानते हैं? क्या इस दिन केवल हिन्दी को ही भारत के संविधान में स्थान दिया गया। आज माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्व विद्यायल में '' भारतीय भाषा में एक अन्तर संवाद'' विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया था। इसमें जाने मने साहित्यकार एवं पत्रकार बालशौरी रेड्डी , मालती जोशी और रामदेव शुक्ल ने वक्तव्य दिए।
रामदेव शुक्ल ने एक कहानी सुनते हुए कहा की माना मैअपनी माता को बहुत अच्छी-अच्छी उपमाओं से संबोधित करते हैं लेकिन पड़ोस की अन्य महिलाओं को गली देते हैं। तो क्या हमें यह विश्वास करना चाहिए की हमारे पड़ोसी हमारी माँ को सम्मान करेंगे। जहाँ तक मेरा मानना है ऐसा नही होगा। ठीक यही हिन्दी की स्थिति है। यदि हम हिन्दी को ही सबसे अच्छी भाषा मान ले और अन्य भारतीय भाषा की आलोचना करें तो क्या गैर हिन्दी भाषी हिन्दी का सम्मान करेंगे। हिन्दी पूरे देश में बोली जाती है। स्वर्गीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जो त्रि भाषा सूत्र दिया था वह आज भी लागु होता है। हम हिन्दी भाषी लोगों को अपने दामन में झांक कर देखना चाहिए की हम कितनी भारतीय भाषा जानते हैं। हिन्दी और इंग्लिश (अंग्रेजी) को तो मिला कर हिंगलिश बना लेते है। तो हिन्दी और किसी भारतीय भाषा को मिला कर क्यों नही बना सकते है।
भारत में हिन्दी को राज भाषा कहा जाता है। लोकतंत्र को बहुत समय तक प्रजातंत्र कहा जाता था। ( कुछ लोग अभी भी इसका प्रयोग करते हैं।) राजा राज्य करता है। और उसी की प्रजा होती है। इसीलिए यदि हिन्दी को राज्य भाषा कहा जाए तो इसका मतलब यही मानना चाहिए की हिन्दी भाषी लोगों को लोकतंत्र का ज्ञान नही है। मेरा मानना है की हिन्दी को राज भाषा न मानकर लोकभाषा मानना चाहिए ।
भाषा का निर्माण कहाँ होता है। और कौन करता है आप उसे साहित्यकार या उसकी पुस्तक बता सकते हैं लेकिन हकीकत कुछ अलग ही है। इसका निर्माण वे करते हैं जिन्हें शायद भाषा शब्द ही पता न हो। मेरा मानना है की प्रत्येक हिन्दी भाषी को कम से कम एक अन्य भारतीय भाषा को जरुर सिखाना चाहिए।

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